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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय
बरताव करते रहे और जेल-कर्मचारी रातके ११-३० बजेतक, उन्हें गिनने या बन्द करनेमें असमर्थ रहे। उन्होंने अगले दिन सुबह भूख हड़ताल शुरू कर दी और किसी भी जेल अधिकारीसे बोलने या उसके सवालोंका जवाब देनेसे इनकार कर दिया। जिन कोठरियोंमें इन लड़कोंको बन्द किया गया था वे साफ नहीं हैं, यह कहना बेकारको बात है। वे निश्चय ही इस जेलके सबसे स्वच्छ और साफ कमरे हैं। इसका प्रमाण यह है कि हाल ही में केन्द्रीय जेलसे जो विशिष्ट कैदी भेजे गये हैं उन्होंने रहने के लिए इन्हींको पसन्द किया है। वहाँ पानी न होने की बात भी सरासर झूठ है। उनको दिनमें इसी अहाते में एक साथ रखा गया था। वहाँ नगरपालिकाके साफ पानीका एक नल बराबर चलता रहता है और यदि उन्हें रातमें पानीकी जरूरत होती थी तो वहाँ एक वार्डर और दो कैदी पहरेदार जो बराबर तैनात रहते हैं, उन्हें पानी दे देते थे।
५ फरवरी (रविवार) को राजनीतिक कैदियोंने अपने दोस्तोंसे मुलाकात लेने से इनकार कर दिया, क्योंकि उन्होंने कहा कि वे भूख हड़ताल कर रहे हैं। शहरके दो-तीन सौ लोगोंके समूहको यह बता दिया गया कि मित्रगणोंने मिलने से इनकार कर दिया है। इसलिए उनसे वापस जानेके लिए कहा। परन्तु वे इस बातपर तैयार नहीं हुए और सदर दरवाजेके सामने कुछ गजको दूरीपर इकट्ठे होकर चीखने-चिल्लाने और गाने लगे। जेलरको इस बातकी आशंका हुई कि लोग कहीं फाटक तोड़कर भीतर न घुस आयें। इसलिए उसने मुझे फोन किया और मैंने पुलिस सुपरिटेंडेंटको फोन द्वारा उस शोर मचानेवाली उद्दण्ड भीड़को जेलकी हदसे बाहर कर देनेके लिए कहा।

भवदीय,
जे॰ ई॰ गोन्डगे

लखनऊ,
२० फरवरी

'यंग इंडिया' (९-२-१९२२) में[१] छपे जिस तारका यहाँ उल्लेख किया गया है, मैंने उसे दोबारा पढ़ा है। जो तथ्य सरकारकी बदनामीके सबसे बड़े कारण थे वे तो लगता है मान ही लिये गये हैं। अन्तर केवल यह है कि सुपरिंटेंडेंटने इन स्वीकृत तथ्योंको कुछ भिन्न रूप दे दिया है; पर निष्पक्ष जाँच किये बिना यह निर्णय कौन कर सकता है कि इन दोनों विरोधी विवरणोंमें से कौन-सा ठीक है? जो लोग आचार्य कृपलानीसे परिचित हैं वे उनके और उनके शिष्योंके विरुद्ध लगाये गये हुल्लड़बाजीके आरोपको कभी स्वीकार नहीं करेंगे। जहाँतक गन्दगी और पानीकी कमीका प्रश्न है, मुझे खुशी है कि सुपरिंटेंडेंट इस आरोपका प्रतिवाद कर सके हैं।

  1. देखिए खण्ड २२, पृष्ठ ३३८।