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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय
माँगनेकी इच्छा जबानी बताई। एक हफ्ते बाद जब जिलेके डिप्टी कमिश्नर जेल में उनसे मिलने आये तो उन्होंने उनसे भी वही बात कही। डिप्टी कमिश्नरने उनसे कहा कि यदि वे सचमुच माफी मांगना चाहते हैं तो लिखित प्रार्थनापत्र दे दें। उक्त कैदीने अगले दिन यानी १० नवम्बर, १९२१को माफीनामा लिख भेजा, जो प्रचलित सरकारी रीतिके अनुसार स्थानीय सरकारको भेज दिया गया। उनके माफीनामेकी बात सबको मालूम थी और आम लोग उनकी सेहत के बारेमें बहुत चिन्तित थे। २१ नवम्बर, १९२१को उनका लड़का उनसे मिला और उसने उनपर माफीनामा वापस लेनेके लिए जोर डाला। वे अपने लड़केके सामने इसके लिए तैयार हो गये। तब सुपरिटेंडेंटने उनसे कहा कि यदि वे वाकई उसे वापस लेना चाहते हैं तो उसके लिए लिखित प्रार्थनापत्र दें। दो दिन बाद यानी २३ नवम्बर, १९२१को कैदीने अपना माफीनामा वापस लेनेका प्रार्थनापत्र दिया, जो सुपरिटेंडेंट द्वारा स्थानीय सरकारके पास भेज दिया गया। मैं आपका ध्यान खास तौरपर इस तथ्य की ओर खींचना चाहता हूँ कि उन्हें अस्पतालसे १७ अक्तूबर, १९२१ को छुट्टी मिल गई थी और उन्होंने अपना माफीनामा १० नवम्बर, १९२१को यानी अस्पतालसे छुट्टी मिलनेके कोई एक महीने बाद दिया था। इस तरह यह साफ हो जाता है कि माफीनामा उन्हें चकमा देकर या कुछ खिलाकर नहीं लिखवाया गया था; बल्कि उसके वापस लिये जानेके लिए उनके मित्रोंको उनपर नैतिक दबाव डालना पड़ा था।
२. यह आरोप कि "उन्हें अंडे और शराब लेनेके लिए बाध्य किया जा रहा है" सच्चाईसे बिलकुल विपरीत है। तथ्य यह है कि कैदीको इनमें से कोई भो चीज नहीं दी जा रही है। उन्होंने सुपरिटेंडेंटसे यह प्रार्थना की थी कि उन्हें अंडे दिये जायें और इस बारेमें अपने सम्बन्धियोंको लिखा था कि वे इस बातको गुप्त ही रखें ताकि वे जातिच्युत न कर दिये जायें। उन्होंने इसका जिक अपने मित्र सागरके लक्ष्मीनारायण और पन्नालालसे भी किया था, जो १६ जनवरी, १९२२को उनसे मिले थे। सुपरिटेंडेंट कैदीको अंडोंकी माँग मंजूर नहीं कर सके, क्योंकि अंडे सवर्ण हिन्दुओंके लिए निषिद्ध हैं।

भवदीय,
एन॰ आर॰ चान्दोरकर
प्रचाराधिकारी मध्य प्रान्त सरकार

इस अयथार्थ कथनका पता मुझे प्रचाराधिकारीका पत्र मिलने से पहले ही लग गया था और पिछले सप्ताह के 'यंग इंडिया' में बदस्तूर उसका उल्लेख[१] किया जा चुका

  1. देखिए खण्ड २२, पृष्ठ ४७६।