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२३. पत्र : महादेव देसाईको

अजमेर
बृहस्पतिवार [९ मार्च, १९२२]

चि॰ महादेव[१],

छोटानी मियाँके[२] बुलावेपर एक दिनके लिए मैं यहाँ आ गया हूँ। आज रातको वापस जाऊँगा। शुएब और परसराम साथ हैं।

तुम्हारा पत्र मिला। मैं नहीं जानता कि दुर्गाने[३] ऐसा कैसे मान लिया कि मुझे दुःख हुआ है। तुमने पत्र लिखा, यह ठीक ही किया। तुम अगर अपने विचार मुझे न बताओ तो मुझे अवश्य दुःख होगा। तुम अपने विचार प्रकट न करो तो मैं उनमें सुधार नहीं कर सकता और तुम्हारे विचारोंके अनुरूप सुधरना चाहूँ तो सुधर भी नहीं सकता। दुर्गा अथवा मथुरादासने अथवा जिस किसीने भी तुमसे कहा है उसने भूल की है। किन्तु इतना सच है कि कैदीको[४] इस तरहकी माथापच्ची करनेका अधिकार नहीं है। उसे उससे दुःखी तो कभी नहीं होना चाहिए। मैं तुम सबको, तुम सब जैसे हो वैसे ही देखना चाहता हूँ। तुम जैसा बनना चाहते हो वैसा नहीं, क्योंकि मैं स्वयं भी तुम सबके सम्मुख वैसा ही दिखना चाहता हूँ जैसा मैं हूँ। मैं जो हूँ उससे अधिक बननेकी मेरी उत्कट इच्छा है लेकिन अगर मैं जो हूँ अपनेको वैसा न दिखाऊँ तो मैं जो बनना चाहता हूँ वह नहीं बन सकता।

अतः इसके लिए तुम्हें क्षमा माँगनेकी कोई जरूरत न थी।

सब कागजोंके मिलने और उनपर मनन करनेके बाद मैं अपने सब विचारोंपर और भी दृढ़ हो गया हूँ। मैंने दिल्लीमें अपनी भाषा बदलकर अपनी समझौतेकी वृत्ति सिद्ध की है। 'यंग इंडिया' में अपने निजी विचारोंको व्यक्त करके अपनी दृढ़ता और स्वतन्त्र वृत्तिको प्रकट कर रहा हूँ। यह बात तुम निश्चयपूर्वक जान लो कि चौरीचौराकी घटनाने हमें दावानलसे उबारा है और स्वराज्यको कितने ही मील समीप ला खड़ा किया है। पहला स्वराज्य तो [जिसे हम प्राप्त करनेकी चेष्टा कर रहे थे] मृगमरीचिका था। साधन और साध्यके बीच इतना निकट सम्बन्ध है कि दोनोंमें से कौन अधिक महत्त्वपूर्ण है, यह कहना कठिन है; अथवा ऐसा कहना चाहिए कि साधन शरीर है और साध्य आत्मा। साध्य अदृश्य है और साधन दृश्य, इस गम्भीर सत्यको बतानेका अवसर तो हमें अब मिलनेवाला है।

  1. महादेव देसाई (१८९२–१९४२)।
  2. मियाँ मुहम्मद हाजी जान मुहम्मद छोटानो, बम्बईके एक राष्ट्रीय मुस्लिम नेता जिन्होंने गांधीजीको बम्बई में होनेवाले मुस्लिम उलेमाओंके सम्मेलनमें आमन्त्रित किया था।
  3. महादेव भाईकी पत्नी।
  4. उस समय महादेव देसाईं इंडिपेंडेंटमें लिखे अपने लेखोंके कारण इलाहाबादके समीप नैनी जेलमें सजा काट रहे थे।