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हजारीबाग जेलमें


जिस तरह सुधन्वा खौलते हुए तेलके कड़ाहमें आनन्दसे नाचता रहा उसी तरह मैं भी, आसपास जो आग धधक रही है, उसके बीच परम आनन्दका उपभोग कर रहा हूँ। अहिंसाका स्वरूप अब प्रकट हो सकेगा।

तुम्हें जो लिखना हो, सो [मुक्त भावसे] लिखना। तनिक भी क्षोभ न करना। अपने आसपास के वातावरणको शुद्ध करते रहना। मेरी कामना है कि तुम्हारा उर्दूका लेखन अत्यन्त तेजस्वी हो। तुम्हारी जरूरत बाहर बहुत है। तथापि तुम अपनी जेलकी अवधिको पूरा कर सको, मेरी यही कामना है।

बाहर की दुनियामें क्या होता है इसके लिए तुम अपने-आपको तनिक भी चिन्ता में न डालो। अमेरिकामें अनेक लोग दुःखी हैं, उनके लिए हम क्या कर सकते हैं? इसी तरह तुम भी, जेलके बाहर क्या होता है, इसके बारेमें क्या कर सकते हो?

बापूके आशीर्वाद

मूल गुजराती पत्र (एस॰ एन॰ ७९८१) की फोटो नकलसे।
 

२४. हजारीबाग जेलमें

[१० मार्च, १९२२ या उसके पूर्व][१]

सम्पादक
'यंग इंडिया'
महोदय
१७–२–२२ को जेल सुपरिंटेंडेंट मेजर कुक और स्थानीय केन्द्रीय जेलके जेलर श्री मैक, हाईकोर्टके वकील शाह अबुतोराब वाजी अहमद बी॰ ए॰, बी॰ एल॰ को देखने गये थे। वे एक राजनीतिक (असहयोगी) कैदी हैं और बक्सर केन्द्रीय जेलसे यहाँ लाये गये हैं। शाह साहब उस वक्त कुरान शरीफ पढ़ रहे थे। उनसे सुपरिटेंडेंटने खड़े होने को कहा, लेकिन कुरान शरीफ पढ़ने में मशगूल होने से वे खड़े नहीं हुए और हाथके इशारेसे जरा ठहरने को कहा। इसपर जेलरने चिल्लाकर अंग्रेजीमें उनसे कुछ कहा और कुरान शरीफको पैरोंसे ठुकराकर, उनको पकड़कर जबरदस्ती खड़ा कर दिया, झकझोरा और कुरान शरीफ लेकर चला गया। इससे जेलके दूसरे राजनीतिक कैदियोंमें बड़ी सनसनी और बेचैनी फैल गई और उन्होंने इसके खिलाफ कुछ विरोध भी प्रदर्शित किया। इन सब घटनाओंकी खबर से इस शहर के लोगों में बहुत भय उत्पन्न हो गया है और उन्हें
  1. गांधीजीने यह और इसके बादका शीर्षक १० मार्चको अपनी गिरफ्तारीके पहले ही प्रकाशनके लिए दिया होगा।