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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


जबतक हम अपने इस निश्चयपर दृढ़ हैं कि हमें पंजाबके बारेमें न्याय प्राप्त करना है, हमें खिलाफतके जख्मको भरना है और स्वराज्य लेना है तथा जबतक वह नहीं मिल जाता तबतक हमें असहयोगपर कायम रहना है, तबतक हमारे लिए निराश होनेका कारण ही क्या है?

जब जर्मनीसे युद्ध शुरू हुआ तब अंग्रेजोंने अपने मनमें यह सोचा था कि दो मासमें युद्ध समाप्त हो जायेगा। लॉर्ड कर्जनने बड़े दिनकी दावत बर्लिनमें खानेकी उम्मीद की थी। १९१४ का दिसम्बर मास बीत गया और १९२० के दिसम्बर महीने तक युद्ध चला। किन्तु इससे क्या अंग्रेज लोग हार गये? लीज खोया, नैमूपर खोया और जर्मन सेना फ्रांसमें पेरिसतक जा पहुँची। इससे क्या फ्रांसने पराजय स्वीकार कर ली? योद्धा जबतक युद्ध करता रहता है तबतक वह हारा हुआ माना ही कैसे जा सकता है? इस बीच अनेक व्यूह रचे जाते हैं, अभिमन्युके लिए जैसा बना था वैसे चक्रव्यूह बनाये जाते हैं, अनेक पहाड़ काटे जाते हैं और अनेक खाइयोंपर पुल बनाये जाते हैं। मनुष्यका और राष्ट्रोंका निर्माण इसी तरह होता है। "क्या जो भक्त प्रयत्न करनेपर भी निष्फल होता है उसकी आत्मा नाशको प्राप्त नहीं होती?"[१] अर्जुनके इस प्रश्न के उत्तरमें श्रीकृष्णने अत्यन्त प्रेम-भरे शब्दोंका प्रयोग करके उसे उत्तर दिया है, "प्रयत्नवानकी दुर्गति तो होती ही नहीं है"[२]। "संशयात्माका ही नाश होता है।"[३] यदि हमारा असह्योगमें विश्वास न हो तो उसे आरम्भ करने के समय ही हम हार चुके।

वह नाटक नहीं था

हमने १९२० में कलकत्ते में जो युद्ध आरम्भ किया था वह नाटक नहीं था।[४] वह राष्ट्रका अडिग निश्चय था। अहमदाबादके मजदूरोंके जैसी ही एक टेक थी।[५] फिर भले ही तेरह दिन लगें अथवा तेईस; क्या ऐसी प्रतिज्ञा करनेवाला कोई भी मनुष्य ईश्वरसे शर्त लगा सकता है?

'एक वर्ष' की बातका अनर्थ

कुछ लोग कहते हैं, "हम अब अपने बच्चोंको राष्ट्रीय स्कूलोंमें किसलिए भेजें? हमने तो एक वर्षकी आशासे ही अपने बच्चोंको स्कूलोंमें से निकाला था?" अगर बहुत सारे लोग इस विचारके हों तो यह ठीक ही हुआ कि एक वर्षमें हमारा काम पूरा नहीं हुआ अन्यथा उनका और भारतका क्या हाल होता?

यदि हम एक वर्षमें अपने हाथमें सत्ता नहीं ले पाये तो जो स्कूल तब हमें पापरूप लगते थे वे अब हमारे लिए किस न्यायसे अपने बच्चोंको भेजने योग्य

  1. गीता, अध्याय ६, ३७-३८।
  2. गीता, अध्याय ६, ४०।
  3. गीता, अध्याय ४, ४०।
  4. सितम्बर १९२० को कलकत्ता में हुए कांग्रेसके विशेष अधिवेशनमें असहयोग आन्दोलनका प्रस्ताव पास किया गया था।
  5. फरवरी १९१८ में; देखिए खण्ड १४।