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पत्र : देवदास गांधीको

न्याय तभी मिलता हो जब उसे अनजान व्यक्तिकी मार्फत और पैसा खर्च करके पाया जाये! न्याय इस तरह पैसे देकर खरीदा नहीं जाता। जो बेचा जा सके वह न्याय नहीं बल्कि अन्याय है। पंच अथवा पंचायत के सम्मुख धूर्तता नहीं चल सकती, और झूठी गवाही नहीं दी जा सकती। पंच दोनों पक्षोंके झगड़ेका निपटारा करवाता है और उन्हें मिलाता है। अदालतकी मार्फत झगड़े तय कराने में दुश्मनी बढ़ती है; पंचकी मार्फत तय कराने में कम होती है। यह बात सच है कि आजकल अच्छे पंचोंके अभावमें लोग अदालतोंमें जाने के लिए उत्सुक रहते हैं और फिर जिन्हें झगड़ा करना ही प्रिय है वे पंचोंके पास जायेंगे ही क्यों? लेकिन यदि प्रत्येक गाँवमें लोग प्रयत्न करें तो पंचों और पंचायतोंसे निर्णय प्राप्त करनेके रिवाजका पुनरुद्धार किया जा सकता है।

केसरकी अपवित्रता

मुझे आजतक इस बातकी जानकारी न थी कि जिस केसरका उपयोग पकवानों और पूजामें किया जाता है वह बाहरसे आती है और उसमें चरबी मिली होती है। श्री मूलचन्द उत्तमचन्द पारेख लिखते हैं :[१]

ऐसी दयनीय स्थितिमें पूजा अथवा पकवानोंमें केसरका उपयोग करना तो पुण्यके नामपर पाप बटोरने के समान है।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, १२–३–१९२२
 

२६. पत्र : देवदास गांधीको

साबरमती
[१० मार्च, १९२२ या उसके पूर्व]

चि॰ देवदास,

तुम अपने विछोहको मेरे लिए दिन-प्रतिदिन अधिक कठिन बनाते जाते हो। तुम्हारा विछोह मुझे, मैं न चाहूँ तब भी, सताता है, तथापि ऐसे समय में वियोग ही उचित है। मैं तुम्हें जो भी उपदेश देना चाहता था सो दे चुका हूँ। अच्छा यही है कि तुम अब सर्वथा निर्दोष विधिसे जेलमें पहुँच जाओ, अर्थात् अपने बचनेका कुछ भी विचार किये बिना, जो खतरे सामने आयें उनमें कूद पड़ो और कहीं भी कोई उपद्रव हो तो तुम पल-भरके लिए भी अपने शरीरकी चिन्ता किये बिना उसे शान्त करनेमें जुट जाओ। मेरी कामना है और में तुम्हें आशीर्वाद देता हूँ कि तुममें ऐसा करनेकी हिम्मत आये।

  1. इस पत्रमें, जो यहाँ नहीं दिया गया है, बताया गया था कि केसर मुख्यतः स्पेनसे आती है। तथा उसमें रक्त और चरबीका मिश्रण होता है।