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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

असर हुआ। बारी साहब जरा तैशमें आ गये थे। मैं वहाँ गया तब कई लोगोंने ऐसा समझा था कि अब इन दोनोंके बीच अच्छी ठनेगी और हिन्दू-मुसलमानोंकी एकता भंग हो जायेगी। किन्तु मौलाना साहब तो अत्यन्त निर्मल मनुष्य हैं। मैंने उनसे कहा आप आज जो भी करेंगे वह नाराजीमें ही किया कहा जायेगा। उससे शायद और पाँच-पच्चीस मुसलमान पागल हो जायें किन्तु उससे कोई लाभ नहीं होगा। मैं भी यह चाहता हूँ कि हम दोनों फाँसीपर चढ़ें किन्तु पूरी तरह निष्कलंक रहकर ही चढ़ें। मौलाना साहब मेरी बात बराबर समझ गये और अब उनकी ओरसे मुझे कोई चिन्ता नहीं रह गई है। मौलाना हसरत मोहानी भी वहाँ थे और मेरे साथ यहाँ आये हैं। उन्होंने मुझे वचन दिया है कि वे हिंसाकी जरा भी हिमायत करके कांग्रेस के कार्य के सीधे-सरल रास्तेमें रोड़ा नहीं अटकायेंगे। अतः मैं निश्चिन्त हूँ।

मैंने सन्देश माँगा तो उन्होंने कहा :

मेरा तो एक ही सन्देश है और वह है खादी। तुम मेरे हाथमें खादी दो और मैं तुम्हारे हाथ में स्वराज्य रख दूँगा। अन्त्यजोंका उद्धार भी इसीमें आता है और हिन्दू-मुसलमानों की एकता भी खादीके ही बलपर टिकी रहेगी। शान्तिकी रक्षाका भी वह एक प्रबल साधन है। इसका यह अर्थ नहीं है कि मैं अब धारा सभाओंका या अदालतोंका बहिष्कार नहीं चाहता। किन्तु उनमें जानेवालोंके खिलाफ लोग कोई द्वेष-भाव न रखें इसलिए यह कहता हूँ कि वे धारा सभाके सदस्यों और वकीलोंकी मदद से भी खादीका काम चलायें। नरम दलवालोंको अच्छी तरह खुश रखना, उनके साथ प्रेम और दोस्ती बढ़ाना। उनके मनसे हमारा भय ज्यों ही दूर होगा कि फिर वे हमारे हो हो जायेंगे। अंग्रेजों के बारेमें भी यही समझना चाहिए।

पण्डित मालवीयजीके विषयमें बात करते हुए गांधीजीने कहा :

वे अब बहुत काम करनेवाले हैं। उन्होंने मुझसे कहा है कि जेल जानेपर तुम देख लेना में कितना काम करता हूँ।

...चलते हुए मैंने कहा कि आपको तो अच्छा नर्सिंग होम मिल गया। उत्तरमें वे खिलखिलाकर हँस पड़े और बोले :

हाँ, यह तो है।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, १९–३–१९२२