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३९. सन्देश : बम्बईको[१]

साबरमती जेल
११ मार्च, १९२२

मैं नहीं चाहता कि बम्बई अपने मूक मन्त्री[२] और मेरी गिरफ्तारीपर दुःख मनाये; बल्कि उसे तो इस बातकी खुशी मनानी चाहिए कि हम लोगोंको आराम मिल रहा है। यों तो मैं चाहूँगा कि असहयोग के सभी कार्यक्रमोंमें लोग स्वतः भाग लेने लगें, पर मैं बम्बईसे तो यही चाहूँगा कि वह अपना सारा ध्यान चरखे और खद्दरपर ही लगाये। बम्बई के धनाढ्य लोग भारत भर में तैयार होनेवाली सारी हाथकती, हाथ-बुनी खादी खरीद सकते हैं। यदि बम्बईकी स्त्रियाँ वास्तवमें अपने हिस्सेका काम करना चाहें तो वे देशके लिए निष्ठापूर्वक प्रतिदिन कुछ समय कताईमें लगा सकती हैं। मैं चाहता हूँ कि कोई भी हमारे पीछे जेल जानेकी बात न सोचे। जबतक पूरी तरहसे अहिंसामय वातावरण नहीं बन जाता, तबतक गिरफ्तार होना अपराधपूर्ण होगा। ऐसे वातावरणकी एक कसोटी यह होगी कि हम अंग्रेजों और नरमदलीय लोगोंको महसूस करा दें कि उनको हमसे कोई खतरा नहीं है। यह तभी हो सकता है जब मतभेदोंके बावजूद हमारी उनके प्रति सद्भावना हो।

मो॰ क॰ गांधी

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ८०५९) की फोटो नकल तथा 'हिन्दू', १४-३-१९२२ से।
 

४०. पत्र : हकीम अजमल खाँको

साबरमती जेल
१२ मार्च, १९२२

प्रिय हकीमजी,

इस बातका बिलकुल ठीक-ठीक पता लगा लेनेके बाद कि जेलके नियमोंके मुताबिक मैं एक हवालाती कैदीकी हैसियतसे जितने भी चाहूँ पत्र लिख सकता हूँ, मैं अपनी गिरफ्तारी के बाद यह पहला पत्र लिखने बैठा हूँ। आप यह तो जानते ही होंगे कि श्री शंकरलाल बैंकर मेरे साथ हैं। मुझे इस बातकी खुशी है। सब लोग जानते हैं कि मेरा उनका कितना निकटका सम्बन्ध हो गया है, इसलिए स्वाभाविक ही है कि एक साथ पकड़े जानेसे हम दोनों खुश हों।

  1. यह सन्देश सरोजिनी नायडूके जरिये भेजा गया था; वे गांधीजीसे साबरमती जेलमें मिली थीं।
  2. शंकरलाल बैंकर।