पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 23.pdf/१३६

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४४. पत्र : उर्मिलादेवीको[१]

साबरमती जेल
१३ मार्च, १९२२

प्रिय बहन,

तुमने तो मेरी बिलकुल ही उपेक्षा कर दी। पर मैं जानता हूँ कि तुमने मेरा समय बचाने के खयालसे ही ऐसा किया है।

मैं चाहता हूँ कि तुम अपना सारा समय बस चरखे और खद्दर में ही लगाओ। शान्ति, अखिल भारतीय एकता और अछूत कहलानेवाले लोगों समेत समूची जनताके साथ हमारे एकात्मक होने का यही एकमात्र स्पष्ट प्रतीक है।

इस पत्रको कृपया बासन्तीदेवी और देशबन्धुको दिखला देना। आशा है देशबन्धु नीरोग और स्वस्थ हैं। बन्दी लोग बीमार पड़ना गवारा नहीं कर सकते।

तुम तो जानती ही हो कि शंकरलाल बैंकर मेरे साथ ही हैं।

तुम सभीको प्यार

श्रीमती उर्मिलादेवी,
नारी कर्म मंदिर
कलकता

[अंग्रेजी से]
स्पोचेज ऐंड राइटिंग्स ऑफ एम॰ के॰ गांधी
 

४५. पत्र : मथुरादास त्रिकमजीको

[साबरमती जेल]
मौनवार, १३ मार्च, १९२२

अब तुमपर भाई शंकरलालका बोझ आ गया है। तुम इसे उठा सकते हो। लेकिन एक शर्त है : तुम्हें कसरत अवश्य करनी चाहिए और हफ्ते में दो दिन प्राथेरान अवश्य जाना चाहिए। तुम्हें बीमार अथवा कमजोर नहीं रहना चाहिए।

मेरी शान्तिका पार नहीं है। यह तो घर ही है। अभीतक तो जेल-जैसा कुछ लगता ही नहीं है। लेकिन विश्वास करो, जब मिलने के लिए आनेवाले लोगोंका आना बन्द हो जायेगा और जब जेलकी कुछ पाबन्दियाँ लग जायेंगी तब और भी अधिक शान्तिका उपभोग करूँगा। इसलिए मेरे लिए दुःखी होनेका तो कोई कारण ही नहीं।

  1. चित्तरंजन दासकी बहन।