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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सत्य में से अहिंसाको फलित कर सकता हूँ। सत्यमें से प्रेमकी प्राप्ति होती है। सत्यमें से मृदुता मिलती है। सत्यवादी सत्याग्रहीको एकदम नम्र होना चाहिए। जैसे-जैसे उसका सत्य बढ़ता है वैसे-वैसे वह नम्र बनता जायेगा। प्रतिक्षण मैं इसका अनुभव कर रहा हूँ। इस समय सत्यका मुझे जितना खयाल है, उतना एक वर्ष पहले न था, और इस समय मैं अपनी अल्पताको जितना अनुभव कर रहा हूँ, उतना एक साल पहले नहीं कर पाता था।

मुझे "ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या" के चमत्कारका दिनोंदिन अधिकाधिक दर्शन होता जा रहा है। इसलिए हमें हमेशा धीरज रखना चाहिए। धैर्य-पालनसे हमारे भीतरकी कठोरता समाप्त हो जायेगी। कठोरताके न रहनेपर हममें सहिष्णुता बढ़ेगी। अपने दोष पहाड़ जितने बड़े प्रतीत होंगे, और संसारके राई—जैसे। शरीरकी स्थिति अहंकारके आधारपर ही सम्भव होती है। शरीरका आत्यन्तिक नाश मोक्ष है। जिसके अहंकारका सर्वथा नाश हुआ है वह मूर्तिमन्त सत्य बन जाता है। उसे ब्रह्म कहने में भी कोई बाधा नहीं हो सकती। इसीलिए परमेश्वरका प्यारा नाम तो दासानुदास है।

स्त्री, पुत्र, मित्र, परिग्रह सब कुछ सत्यके अधीन रहना चाहिए। सत्यकी शोध करते हुए इन सबका त्याग करनेको तत्पर रहें तभी सत्याग्रही बना जा सकता है। इस धर्मका पालन अपेक्षाकृत सहज हो जाये, इस हेतु मैं इस प्रवृत्तिमें पड़ा हूँ, और तुम्हारे समान लोगों को होनेमें भी नहीं झिझकता। इसका बाह्य स्वरूप हिन्द स्वराज्य है। और हिन्द स्वराज्यका सच्चा स्वरूप तो व्यक्ति-व्यक्तिका स्वराज्य है। अभीतक एक भी ऐसा शुद्ध सत्याग्रही उत्पन्न नहीं हुआ है, इसी कारण यह देर हो रही है। किन्तु इसमें घबराने की कोई बात नहीं है। इससे इतना ही सिद्ध होता है कि हमें और भी अधिक प्रयत्न करना चाहिए।

तुम पाँचवें पुत्र तो बने ही हो। किन्तु मैं योग्य पिता बननेका प्रयत्न कर रहा हूँ। दत्तक लेनेवालेका दायित्व कोई साधारण नहीं है। ईश्वर मेरी सहायता करे और मैं इसी जन्म में उसके योग्य बनूँ।[१]

बापूके आशीर्वाद

मूल गुजराती पत्र ( जी॰ एन॰ २८४३) की फोटो नकलसे।
 
  1. पत्रपर जेल अधिकारी की सही और १७ मार्चकी तारीख पड़ी है। गांधीजीने यह पत्र विचाराधीन (अन्डर ट्रायल) कैदीकी हालत में साबरमती जेलसे लिखा था।