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४९. पत्र : सी॰ एफ॰ एन्ड्रयूजको[१]

साबरमती जेल
१७ मार्च, १९२२

प्रिय चार्ली,

तुम्हारा पत्र मुझे अभी-अभी मिला। तुम अपना काम छोड़कर यहाँ नहीं आये, यह ठीक ही किया। गुरुदेव के पास तो तुम जरूर जाना और जबतक उन्हें तुम्हारी आवश्यकता हो उनके पास बने रहना। समय मिलनेपर यदि तुम आश्रम (साबरमती) जाकर कुछ दिन रहो, तो मुझे सचमुच अच्छा लगेगा। मैं यह नहीं चाहता कि तुम जेलमें मुझसे मिलने आओ। मैं यहाँ बहुत ही मजे में हूँ। जेल जीवनका मेरा आदर्श, और खासकर सत्याग्रहीकी हैसियतसे तो यही है कि मैं बाहरी संसारसे किसी तरहका सम्बन्ध न रखूँ। बाहरी आदमियोंसे मिलनेकी इजाजत होना एक प्रकारकी रियायत है। इन रियायतोंका त्याग करनेसे तो जेल जीवनका धार्मिक महत्त्व और भी बढ़ जाता है। मुझे जो सज़ा मिलनेवाली है, वह मेरी नजर में राजनीतिक लाभ की बजाय धार्मिक लाभ ही अधिक है। और अगर इसे लाभ न कहकर त्याग कहा जाये तो मैं चाहता हूँ कि वह शुद्धसे-शुद्ध ही हो।

सस्नेह,

तुम्हारा,
मोहन

अंग्रेजी पत्र ( जी॰ एन॰ १३०७ ) की फोटो-नकलसे।
 
  1. यह पत्र सी॰ एफ॰ एन्ड्यूजके उस पत्रके उत्तर में भेजा गया था जिसमें उन्होंने रेलवे हड़तालके कारण अपना काम छोड़कर मुकदमेके फैसलेसे पहले गांधीजीके पास न पहुँच पानेकी अपनी असमर्थतापर खेद प्रकट किया था।