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५०. पत्र : एक बालिका-मित्रको[१]

साबरमती जेल
१७ मार्च, १९२२

रानी बिटिया,

मेरा खयाल है कि तुम सब मेरी गिरफ्तारी की खबर पाकर प्रसन्न हुए होगे। इससे मुझे भी बहुत प्रसन्नता हुई है, क्योंकि गिरफ्तारी उस समय हुई जब मैं बारडोलीकी तपश्चर्या पूरी करके शुद्ध हो चुका था और खादी उत्पादन अर्थात् सूत कताईके गौरवपूर्ण कार्यको छोड़कर किसी अन्य प्रयोगपर अपना ध्यान केन्द्रित नहीं कर रहा था। मैं चाहता हूँ कि तुम चरखे के अन्दर छिपे रहस्यको समझो। मानव-समाजके कल्याणकी आन्तरिक भावनाकी बाह्य, दृश्य अभिव्यक्ति केवल चरखा ही है। यदि क्षुधापीड़ित लाखों भारतवासियोंके लिए हमारे दिलोंमें सहानुभूति है, तो हमें अवश्य ही उनके घरोंमें चरखा चलवाना चाहिए। इसलिए हमें चरखेसे सूत कातनेमें विशेषज्ञ बनना चाहिए और लोगोंकी सूत कातनेकी आवश्यकता समझाने के उद्देश्यसे स्वयं नित्य एक धार्मिक कृत्य समझकर चरखा चलाना चाहिए। यदि तुम चरखेके रहस्य और सत्यको समझ गई हो और यदि तुम्हारे दिलमें यह बात बैठ गई है कि चरखा मानवजातिके प्रति प्रेमका प्रतीक है तो तुम किसी अन्य बाहरी प्रवृत्ति में हाथ न डालोगी। यदि बहुतसे लोग तुम्हारा अनुकरण न करें, तो तुम्हें सूत कातने, रुई धुनने और कपड़े बुननेके लिए अधिक अवकाश मिलेगा।

तुम सब मेरे प्यार लो।

बापू

[अंग्रेजीसे]
स्पीचेज ऐंड राइटिंग्स ऑफ एम॰ के॰ गांधी
 
  1. साधन-सूत्र में पत्र जिसे लिखा गया था उसके नामका कोई उल्लेख नहीं है। अंग्रजी पत्रमें "माई डियर चाइल्ड" सम्बोधनका प्रयोग हुआ है; इस सम्बोधनका प्रयोग एस्थर मेननको लिखे गये पत्रों में प्राप्त होता है। अतः सम्भव है कि यह पत्र भी उन्हें ही लिखा गया हो।