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५३. पत्र : किशोरलाल मशरूवालाको

साबरमती जेल
शुक्रवार [१७ मार्च, १९२२][१]

भाईश्री किशोरलाल,

तुम्हारी याद हमेशा करता था। मिल सका होता तो अच्छा होता। किन्तु तुम्हारा पत्र भी पर्याप्त है। तुमने मुझसे मिलनेके लिए आनेका विचार छोड़ दिया, यही ठीक है। आनेसे कोई विशेष लाभ न होता और उसके कारण तुम्हारी साधनामें[२] जो बाधा पड़ती, वह एक स्पष्ट नुकसान था।

तुम्हारा प्रयत्न शुद्ध है इसलिए सफल होगा ही। कोई भी शुभ प्रयत्न व्यर्थ तो जाता ही नहीं।

मुझे अभी सजा नहीं हुई है। उसका निर्णय तो सम्भवतः कल होगा। अभी तो कच्ची जेल है। मेरा मन बिलकुल शान्त है। साथमें शंकरलाल बैंकर भी हैं।

मेरे आशीर्वाद तो तुम सबको हैं ही। वहाँसे जानेकी उतावली न करना। किन्तु अन्तरात्मा जिस समय कहे कि चल ही देना चाहिए उस समय जरूर चले जाना।

बापूके आशीर्वाद

[गुजरातीसे]
श्रेयार्थीनी साधना
 

५४. पत्र : बी॰ एफ॰ भरूचाको[३]

[सावरमती जेल
१८ मार्च, १९२२ के पूर्व]

भला मैं आपको पत्र लिखना कैसे भूल सकता हूँ? कृपया मेरे पारसी भाई-बहनोंसे कहिए कि वे इस आन्दोलनके प्रति अपनी आस्था कदापि डिगने न दें। मुझे उनपर जो भरोसा है, मेरे लिए उसे त्यागना असम्भव है। मेरे सामने खादी और चरखा, चरखा और खादी इसके सिवा कोई कार्यक्रम नहीं है। हाथके सूतका चलन हमारे बीच पैसे- धेलेकी तरह हो जाना चाहिए। इस उद्देश्यकी पूर्तिके लिए

  1. गांधीजीको शनिवार, १८ मार्च, १९२२ को सजा सुनाई गई थी। यह उसके एक दिन पहले लिखा गया था।
  2. किशोरलाल मशरूवाला चिन्तनके लिए एक झोंपड़ीमें रहने लगे थे।
  3. गांधीजीने श्री बी॰ एफ॰ भरूचाके नाम यह पत्र मुकदमेकी सुनवाई होनेसे पूर्व १८ मार्चको भेजा था।