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भेंट : 'मैनचेस्टर गाजियन' के प्रतिनिधिसे


मैंने प्रश्न किया, "पशुओंकी आत्मा कहाँसे आती है? क्या आपका खयाल है कि मनुष्यकी आत्मा पशुओंकी आत्मा बन सकती है?"

उन्होंने कहा :

हाँ, मेरा खयाल है कि कुटिल-मति, लालची और क्रूर, निर्दय मनुष्योंकी आत्माएँ इन भयंकर और बुरे जीवोंके शरीरोंमें वास करती हैं।

"आप उन असंख्य जीवों, उन लाखों करोड़ों कीड़े-मकोड़ोंकी ओर नजर डालें जीवधारियोंके किसी एक ही समूहको लें; क्या इन मच्छरों, मक्खियों और जीवाणुओं—सभीके आत्मा होती है?"

गांधीजीने उत्तर दिया :

हमें परमात्मा के कार्यक्षेत्रको सीमित करनेका क्या अधिकार है? क्या इस ब्रह्माण्डमें असंख्य सूर्य और ग्रह नहीं हैं?

अब वहाँसे मेरी रवानगीका वक्त हो चुका था, क्योंकि मुझे दूसरी जगह जाना था। इसलिए मैं उनसे विदा लेनेके लिए उठा। वे बरामदे में जिस छोटी-सी दरीपर बैठें हुए थे मैं उसके सिरेतक गया और अपने जूते पहनने लगा। (में एक प्रकारसे उनका अतिथि था, अतः पूर्वी देशोंकी प्रथाके अनुसार मैंने अपने जूते वहाँ उतार दिये थे।)

मैंने ज्यों ही एक जूता उठाया, त्यों ही मुझे उसमें एक मकड़ी दीख पड़ी। मैंने उस घृणित मकड़ीको झाड़ दिया और कुचल देनेकी भावनाको रोकते हुए उसे दूर भगा दिया। इसके साथ ही मैंने हँसते हुए कहा, "यह देखिए, यह मकड़ी मेरे पास प्रलोभनके रूपमें इस बातकी जाँच करनेके लिए भेजी गई है कि मैंने आपके उपदेशसे लाभ उठाया है या नहीं।"

गांधीजी खिलखिलाकर हँसे—उनकी हँसी ऐसी उन्मुक्त होती है कि उसे सुनकर दूसरे लोग बिना हँसे नहीं रह सकते—और उन्होंने कहा :

हाँ, मकड़ी भी बहुत बड़ी चीज हो सकती है। क्या आपको मुहम्मद साहब और मकड़ीकी बात मालूम है?

मैंने कहा, नहीं, मुझे नहीं मालूम। मुझे सन्देह हो रहा था कि गांधीजीने भूलसे मकड़ी की बात रॉबर्ट ब्रूसकी बजाय मुहम्मद साहबसे तो नहीं जोड़ दी है।

गांधीजी ने कहा :

एक दिन मुहम्मद साहब अपने दुश्मनोंसे भारी खतरा महसूस करके भागे जा रहे थे। जब बचावकी दूसरी सूरत न दिखी तो चट्टानमें एक गुफा-सी बनी देखकर वे उसमें घुस गये। इसके कुछ घंटे बाद उनके दुश्मन उनका पीछा करते हुए वहाँ आये। उनमें से एकने कहा "आओ इस गुफामें देखें, वे यहाँ छिपे हो सकते हैं।" दूसरेने कहा, "नहीं, वे इस गुफामें नहीं हो सकते, क्योंकि देखो न, इसके मुँहपर तो मकड़ी का जाला तना है।" उनके दुश्मन यह नहीं समझे कि मकड़ीने यह जाला अभी