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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

ताना है, और वहाँसे चले गये। इस प्रकार अल्लाहकी मर्जी और मकड़ीकी मदद से मुहम्मद साहब बच गये।[१]

[अंग्रेजीसे]
हिन्दू, १५–८–१९२२
 

५६. पत्र : जमनालाल बजाजको

साबरमती जेल
१८ मार्च, १९२२

भाई जमनालाल,

केवल आर्थिक दृष्टिसे मैं कह सकता हूँ कि यदि विदेशी सुत और कपड़ोका व्यापार करनेवाले अपना व्यापारको नहिं छोड़ेंगे और जनता विदेशी कपड़ाका मोहको नहिं छोड़ेंगे तो मुलककी महा बिमारी भूख हरगीज हट नहीं सकती है। मेरी उमेद है सब वेपारी खद्दर और चरखा प्रचारमें पूरा हिस्सा देंगे।

आपका,
मोहनदास गांधी

मूल पत्र (जी॰ एन॰ २१९८ तथा २८४४) की फोटो-नकलसे।
  1. संवाददाताने अपना विवरण समाप्त करते हुए लिखा था :
    गांधीजी उक्त बात कह ही रहे थे कि उनके मित्र और जेलके साथी श्री शंकरलाल बैंकरने उनका चरखा लाकर उनके सामने रख दिया। मैने जब गांधीजीसे विदा ली तभी वे अपना यह रोजका काम शुरू करने जा रहे थे। गांधीजी प्रतिदिन एक कार्यमें उनके अनुयायी (व्यवहार में नहीं तो निश्चित मात्रामें सूत कातते या कपड़ा बुनते हैं और इस सिद्धान्त रूपमें अनुयायी) भी भाग लेते हैं।
    जब मैं बरामदेके छोर पर पहुँचा तब मैंने मुड़कर उनकी ओर आखिरी बार देखा। यह सरल-स्वभाव मनुष्य वैसी ही सादी पोशाक पहने हुए था जैसी कि कोई गरीबसे गरीब कुली पहनता है। वह पालथी मारे जमीनपर सीधा बैठा था; सामने चरखा था और वह उससे बड़े इत्मीनानसे वैसे ही सूत कात रहा था जैसे मुहम्मद साहबकी गुफापर मकदीने जाला ताना था। मेरे मनमें यह खयाल आया कि यह मनुष्य ईसाई नैतिकतासे सर्वथा शुन्य औद्योगिक प्रणालीके खतरेसे भारतके किसानोंकी रक्षा करनेके लिए जाल बुन रहा है; या वह अपने असाधारण मस्तिष्क में बने महान् मतिभ्रमरूपी जालमें स्वयं फँस गया है और उसमें अपने सैकड़ों-हजारों भावुक और भोले-भाले देशवासियोंको भी फँसा लिया है?