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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लेकिन मेरा पूरा बयान सुनकर आपको शायद इस बातका अन्दाज हो जायेगा कि मेरे भीतर ऐसा क्या कुछ उमड़ रहा है जिसके कारण एक अच्छा भला आदमी बड़ेसे-बड़ा खतरा मोल लेने को तैयार हो सकता है।

इसके बाद उन्होंने अपना बयान पढ़कर सुनाया।

बयान

भारतीय जनता के प्रति और इंग्लैंडकी जनता के प्रति भी, जिसे सन्तुष्ट करनेके लिए यह मुकदमा मुख्य रूपसे चलाया गया है, शायद मेरी यह जिम्मेदारी है कि मैं इस चीजपर प्रकाश डालूँ कि एक कट्टर राजभक्त और सहयोगीसे मैं राजनीतिक असन्तोषका हठी प्रचारक और असहयोगी कैसे बन गया। न्यायालयको भी मैं यह बताना चाहता हूँ कि भारत में कानून द्वारा स्थापित सरकारके प्रति असन्तोष फैलानेके अपराधको मैं क्यों स्वीकार कर रहा हूँ।

मेरे सार्वजनिक जीवनका आरम्भ १८९३ में दक्षिण आफ्रिकामें संकटपूर्ण स्थितिमें हुआ था। उस देश में ब्रिटिश सत्तासे मेरा पहला सम्पर्क कदापि सुखद नहीं था। मुझे यह पता चला कि एक मनुष्यके नाते और एक भारतीयके नाते मेरे अपने कोई अधिकार ही नहीं हैं। बल्कि ज्यादा सही यही है कि एक मनुष्यके नाते मेरे अधिकार इसलिए नहीं हैं, क्योंकि में एक भारतीय हूँ।

लेकिन मैं घबराया नहीं। मैंने अपने मनको समझाया कि भारतीयोंके साथ आज जो दुर्व्यवहार किया जा रहा है, उसका कारण यह नहीं है कि यह शासनतन्त्र बुरा है। वह मूलतः और मुख्यतः तो अच्छा ही है; किन्तु इसपर कुछ मैल जरूर चढ़ गया है। इसलिए मैं स्वेच्छासे और सच्चे दिलसे उस तन्त्रके साथ सहयोग करता रहा हूँ। जहाँ कहीं उसमें कोई दोष दिखाई दिये, उनकी मैंने खुलकर आलोचना भी की, किन्तु उसका नाश कभी नहीं चाहा। यही कारण है कि जब १८९९में बोअर युद्ध के समय साम्राज्यका अस्तित्व खतरे में पड़ गया, तब मैंने उसे अपनी सेवाएँ अर्पित कीं।[१] मैंने एक आहत सहायक दल खड़ा किया और लेडीस्मिथकी रक्षाके लिए जो अनेक लड़ाइयाँ हुईं, मैंने उन सबमें काम किया।[२] इसी प्रकार १९०६ में जुलू-विद्रोह के समय मैंने एक डोली वाहक दल खड़ा किया और विद्रोहके शान्त होनेतक काम करता रहा।[३] दोनों अवसरोंपर अपनी सेवाओंके लिए मुझे पदक मिले और सरकारी खरीतोंमें भी मेरे कामका खास उल्लेख किया गया। दक्षिण आफ्रिकामें मेरे कामकी सराहनामें लॉर्ड हार्डिंगकी तरफसे मुझे कैसरे-हिन्द स्वर्ण पदक मिला।[४] जब १९१४में इंग्लैंड और जर्मनी के बीच युद्ध छिड़ा तब मैंने लन्दनमें स्वयंसेवकों का एक आहत सहायक दल खड़ा किया।[५] उस दलमें वहाँ रहनेवाले भारतीय और मुख्यतः विद्यार्थीगण शामिल

  1. देखिए खण्ड ३, पृष्ठ १२२-२३।
  2. देखिए खण्ड ३, पृष्ठ १४७-५२।
  3. देखिए खण्ड ५, पृष्ठ ३८०-८३।
  4. देखिए खण्ड १३, पृष्ठ १७३ और १७५।
  5. देखिए खण्ड १२, पृष्ठ ५२५-२६।