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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

गया है कि उसमें अकालका मुकाबला करनेकी क्षमता नहीं बची है। अंग्रेजोंके आगमन से पूर्व भारतके लाखों घरोंमें कताई और बुनाईका काम हुआ करता था और इस तरह खेती से होनेवाली अपर्याप्त आयमें कुछ जुड़ जाता था और कमी की पूर्ति हो जाती थी। किन्तु भारतके अस्तित्वके लिए इतने महत्त्वके इस कुटीर उद्योगको अकल्पनीय निष्ठुरतापूर्ण अमानुषिक उपायोंका सहारा लेकर किस तरह नष्ट कर दिया गया, स्वयं अंग्रेज लेखक इसके गवाह हैं। आधा पेट खाकर रहनेवाली भारतकी आम जनता किस तरह धीरे-धीरे मृतप्राय होती जा रही है, शहरमें रहनेवाले इसे क्या जानें? उन्हें इसकी कोई खबर नहीं है कि वे भारतके शोषणकर्त्ता विदेशियोंके घर भरनेके लिए की गई मेहनत के बदले में जो कुछ पाते हैं और जिसके बलपर अपनी समझमें मौज उड़ाते हैं वह उनके मुनाफेके मुकाबलेमें दलाली ही बैठती है और उन्हें इस बातका भी भान नहीं है कि यह सारा मुनाफा और सारी दलाली गरीब जनताका खून चूसकर ही प्राप्त की जाती। उन्हें यह सूझता ही नहीं कि ब्रिटिश भारतमें कानून द्वारा स्थापित सरकार उस गरीब आम जनताको इस प्रकार चूसनेके लिए ही चलाई जा रही है। किसी भी तरह के वितंडावाद अथवा थोथी आँकड़ेबाजीसे उस साक्ष्यको झुठलाया नहीं जा सकता, जो भारतके लाखों गाँवोंमें करोड़ों अस्थिपंजर हमारी खुली आँखों के सामने प्रस्तुत करते हैं। मुझे तो इस बातमें तनिक भी सन्देह नहीं कि यदि हम सबके ऊपर ईश्वर है तो उसके दरबारमें इंग्लैंडवालों को और भारतके शहरी लोगोंको इस घोर अपराध के लिए जवाब देना पड़ेगा। मेरे खयालसे तो मानव-जातिके विरुद्ध किये जा रहे इस अपराध-जैसी इतिहास में शायद ही कोई मिसाल मिले। इस देशमें कानूनका उपयोग भी विदेशी शोषकोंकी सेवा करनेके लिए ही किया जाता रहा है। पंजाब मार्शल लॉके अन्तर्गत चलाये गये मुकदमोंकी निष्पक्ष जाँचके बाद मेरी यही धारणा बनी है कि कमसे कम पंचानवे प्रतिशत सजाएँ सर्वथा अन्यायपूर्ण थीं।[१] और भारतमें राजनीतिक मुकदमोंके बारेमें मेरा अनुभव यही कहता है कि हर दस सजायाफ्ता लोगों में नौ तो सर्वथा निर्दोष होते हैं। उनका अपराध यही है कि उन्हें अपने देशसे प्रेम है। भारतीय अदालतोंमें सौमें से निन्यानवे मामलोंमें यूरोपीयोंके मुकाबले भारतीयोंके साथ न्याय नहीं किया गया। इसमें कहीं कोई अतिशयोक्ति नहीं है। जिन भारतीयोंका ऐसे मामलोंसे थोड़ा भी सम्बन्ध रहा है, उन सबका अनुभव प्रायः यही रहा है। मेरे विचारसे तो विदेशी शोषकोंके लाभके लिए जाने-अनजाने प्रशासनमें कानूनका दुरुपयोग ही किया गया है।

सबसे बड़ा दुर्भाग्य तो यह है कि अंग्रेज लोग और देशका शासन चलानेमें शरीक उनके भारतीय सहयोगी यह समझते ही नहीं कि वे उपर्युक्त अपराध करनेमें लिप्त हैं। मुझे बखूबी मालूम है कि बहुतसे अंग्रेज और भारतीय अधिकारी ईमानदारीसे यह मानते हैं कि वे जिस शासन-तन्त्रको चला रहे हैं वह दुनियाके सर्वोत्तम तन्त्रों में से है और उसके अधीन भारत धीरे-धीरे ही सही किन्तु निश्चित प्रगति कर रहा है। उन्हें नहीं मालूम कि एक ओर आतंककी इस सूक्ष्म किन्तु प्रभावकारी प्रणाली तथा पशुबलके

  1. देखिए खण्ड १७, पृष्ठ ३१७-२२।