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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

नागरिकके नाते मनुष्यका सर्वोपरि कर्त्तव्य है, और उसके लिए कड़ी से कड़ी सजा माँगने और उसे शिरोधार्य करनेके लिए मैं यहाँ खड़ा हूँ। इसलिए न्यायाधीश महोदय, अब आपके सामने यही एक रास्ता है कि जिस कानूनपर अमल करनेका काम आपको सौंपा गया है, उसे यदि आप अन्यायपूर्ण मानते हों और मुझे सचमुच निर्दोष समझते हों तो आप अपना पद त्याग दें और इस प्रकार अन्यायमें शरीक होनेसे बचें। इसके विपरीत यदि आपका यह मत हो कि जिस तन्त्र और जिस कानूनको चलानेमें आप मदद कर रहे हैं वे इस देशकी जनताके लिए हितकर हैं और इसलिए मेरी प्रवृत्तियाँ सार्वजनिक कल्याण के लिए हानिकर हैं तो आप मुझे कड़ीसे-कड़ी सजा दें।[१]

न्यायाधीश : श्री बैंकर, क्या आप सजाके सम्बन्ध में कुछ कहना चाहते हैं?

श्री बैंकर : मैं सिर्फ इतना कहना चाहता हूँ कि इन लेखोंको छापनेका सौभाग्य मुझे ही प्राप्त हुआ था और मैं अपना अपराध स्वीकार करता हूँ। सजाके सम्बन्धमें मुझे कुछ भी नहीं कहना है।

न्यायाधीशने जो निर्णय दिया उसका पूरा पाठ इस प्रकार था :

श्री गांधी, आपने अपना अपराध स्वीकार करके एक तरह से मेरा कार्य सरल कर दिया है। फिर भी जो शेष रह जाता है, अर्थात् उचित दण्डका निर्णय करना, वह कोई साधारण समस्या नहीं है। इस देशमें किसी भी न्यायाधीशको कठिन से कठिन जिस समस्याका सामना करना पड़ सकता है, यह समस्या शायद उतनी ही कठिन है। कानून किसी भी व्यक्तिका लिहाज नहीं करता। फिर भी इस तथ्यकी उपेक्षा नहीं की जा सकती कि मेरे सामने अबतक विचारके लिए जितने लोगोंके मुकदमे आये हैं या भविष्यमें आ सकते हैं, आप उन सबसे भिन्न श्रेणीके व्यक्ति हैं। इस तथ्यकी उपेक्षा नहीं की जा सकती कि अपने लाखों देशवासियोंकी नजरोंमें आप एक महान् देशभक्त और महान् नेता हैं। जो लोग आपसे राजनीतिक मतभेद रखते हैं वे भी आपको उच्च आदर्शवादी और एक ऐसा व्यक्ति मानते हैं जिसका जीवन महान् और यहाँतक कि सन्तों—जैसा है। मुझे आपके बारेमें केवल एक दृष्टिसे विचार करना है। किसी अन्य दृष्टिसे आपके बारेमें निर्णय या आलोचना करना मेरा कर्त्तव्य नहीं है और मैं वैसा करनेकी धृष्टता भी नहीं कर रहा हूँ। मेरा कर्त्तव्य यह है कि मैं आपको एक ऐसा मनुष्य मानकर आपके बारेमें निर्णय दूँ जो कानून के अधीन है, जो स्वयं यह स्वीकार कर चुका है कि उसने कानूनको तोड़ा है और जिसने वह सब किया है जो एक साधारण मनुष्यकी दृष्टिमें निश्चय ही राज्यके विरुद्ध गम्भीर अपराध है। मैं यह जानता हूँ कि आप हिंसा विरुद्ध निरन्तर प्रचार करते रहे हैं और मैं यह विश्वास करनेको भी तैयार हूँ कि आपने कई बार हिंसाको रोकने के लिए बहुत कुछ किया भी है। लेकिन एक बात मेरी समझमें नहीं आती कि अपने

  1. गांधीजी द्वारा हस्ताक्षरित हस्तलिखित बयानकी फोटो नकल ट्रायल ऑफ गांधीजी, पृष्ठ १६८–९२ में दी गई है।