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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

इस तमाम वक्त मुस्कराते रहे और शान्तचित्त रहे और जो भी उनके पास पहुँचा उसको हिम्मत बँधाते रहे। श्री बैंकर भी मुस्करा रहे थे और इस सबको बड़े ही सहज भावसे देख रहे थे। सारे मित्रोंके विदा हो जानेके बाद, श्री गांधीको अदालतसे बाहर लाकर साबरमती जेल भेज दिया गया। इस प्रकार इस शानदार मुकदमेका पटाक्षेप हुआ।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २३–३–१९२२
 

५८. सन्देश : देशके नाम[१]

[अहमदाबाद
१८ मार्च, १९२२]

गांधीजीने सजा सुननेके पश्चात् अपने पास खड़े कांग्रेसके महामंत्रीको देश-वासियोंके लिए यह सन्देश दिया :

मुझे यह देखकर प्रसन्नता होती है कि छः दिनोंमें देशभर में स्वर्गकी-सी शान्ति रही है। अगर यह वातावरण इस संघर्ष के अन्ततक बना रहा तो संघर्ष अवश्य ही छोटा और प्रकाशप्रद होगा।[२]

अदालतसे विदा होते समय महात्माजीने कहा :

मुझे अब सन्देश देनेकी आवश्यकता नहीं। मेरा सन्देश तो लोग जानते ही हैं। लोगोंसे कहिए कि हरएक हिन्दुस्तानी शान्ति रखे। हर प्रयत्नसे शान्तिकी रक्षा करे। केवल खादी पहने और चरखा काते। लोग यदि मुझे छुड़ाना चाहते हों तो शान्तिके द्वारा ही छुड़ायें। यदि लोग शान्ति छोड़ देंगे तो याद रखिये मैं जेलमें रहना पसन्द करूँगा।

स्पीचेज ऐंड राइटिंग्ज ऑफ एम॰ के॰ गांधी
हिन्दी नवजीवन, १९–३–१९२२
  1. अदालतसे विदा होनेके पूर्व गांधीजी द्वारा दिये गये दो सन्देश विभिन्न सूत्रोंसे प्राप्त हुए हैं। यहाँ उन्हें एक साथ दिया जा रहा है।
  2. इस अनुच्छेदका अनुवाद स्पीचेज ऐंड राइटिंग्ज ऑफ एम॰ के॰ गांधी में उपलब्ध पाठसे किया गया है।