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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

बताया कि चरखा कातना मेरा व्रत है और हम दोनोंको साबरमती जेलमें प्रतिदिन ऐसा करने की अनुमति भी थी। इसपर हमें जवाब मिला कि यरवदा साबरमती नहीं है।

मैंने सुपरिटेंडेंट को यह भी बताया कि स्वास्थ्यका खयाल रखते हुए हम दोनोंको साबरमती जेलमें बाहर सोनेकी अनुमति मिली हुई थी; लेकिन इस जेलमें इसकी भी आशा नहीं की जा सकती थी।

इस तरह हमपर जो पहली छाप पड़ी वह अच्छी नहीं थी। पर मैं इससे तनिक भी उद्विग्न नहीं हुआ। सोमवारके पूरे दिनके उपवास और फिर मंगलवारके आधे उपवाससे मुझे कोई हानि नहीं हुई। पर मैं जानता हूँ कि श्री बैंकरको यह बात खली। वे रातमें चौंकते और डरते रहते हैं और उनके पास किसीका रहना आवश्यक है। शायद जीवनमें उनका यह पहला कड़वा अनुभव था। मैं तो जेलका पुराना पंछी ठहरा।

अगले दिन सुबह सुपरिंटेंडेंट हमसे पूछताछ करने आये। मैंने देखा कि सुपरिटेंडेंट के बारेमें मेरा पहला खयाल उचित नहीं था। जाहिर है, पिछली शामको तो वे जल्दीमें थे। हम लोग नियमित समय के बाद जेल पहुँचे थे और उन्हें इस बातका कोई अनुमान नहीं था कि मैं कोई ऐसी माँग पेश कर दूंगा जो उनके लिए निःसन्देह एक विचित्र माँग थी। परन्तु अब यह बात उनकी समझ में आ गई कि चरखा रखनेकी मेरी प्रार्थनाके पीछे उन्हें तंग करनेका खयाल नहीं था, बल्कि वस्तुतः सही कहिए या गलत, मेरे लिए वह एक धार्मिक आवश्यकता थी। उन्होंने यह भी जान लिया कि यह कोई भूख हड़तालका सवाल नहीं है। उन्होंने हुक्म दे दिया कि हम दोनोंको चरखे वापस दिये जायें। वे यह भी समझ गये कि जिस भोजनके लिए हमने कहा था वह हम दोनों के लिए जरूरी है।

जहाँतक मैं देख पाया हूँ, शारीरिक सुख-सुविधाका इस जेलमें ठीक खयाल रखा जाता है। सुपरिंटेंडेंट और जेलर दोनों मुझे होशियार लगते हैं और उनका बरताव अच्छा है। पहले दिनका अनुभव अब मेरे लिए कोई महत्त्व नहीं रखता। सुपरिंटेंडेंट और जेलरके साथ मेरे सम्बन्ध इतने मैत्रीपूर्ण हैं जितने कि बन्दी और उसके प्रहरियों में परस्पर हो सकते हैं।

पर यह चीज भी मेरे आगे स्पष्ट हो गई है कि मानवीय तत्त्वका इस जेल-व्यवस्था में यदि पूर्ण नहीं तो अधिकतर अभाव है। सुपरिटेंडेंटने मुझे बताया है कि सभी कैदियों के साथ इसी तरहका व्यवहार होता है जैसा कि मेरे साथ हो रहा है। यदि ऐसा है तो जीवधारियोंकी हैसियतसे कैदियोंकी शायद ही इससे बेहतर देखभाल की जा सके; पर मानवीय भावनाके लिए जेलके नियमोंमें कोई गुंजाइश नहीं।

अगले दिन सुबह जेल-समितिने जो कुछ किया वह सुनिए। इस समितिमें कलक्टर, एक पादरी और कुछ अन्य लोग हैं। संयोगकी बात है कि इस समितिकी बैठक हमारे जेलमें दाखिल होनेके अगले ही दिन हुई। सदस्य हमारी जरूरतें जाननेके लिए आये। मैंने इस बातका जिक्र किया कि श्री बैंकरको हौलदिलीकी बीमारी है, उन्हें मेरे साथ रखा जाये तथा उनकी कोठरी खुली रहने दी जाये। इस प्रार्थनाके प्रति कैसी तिरस्कारपूर्ण और हृदयहीन उपेक्षा दिखाई गई, मैं बता नहीं सकता। सदस्यों में