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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

काम में लाता रहूँ। सुपरिटेंडेंटसे मैंने बड़ी नम्रता से कहा कि मैं अपनी अन्य पुस्तकोंको तो भेंट कर सकता हूँ, लेकिन जिन धार्मिक पुस्तकोंको मैं बराबर काममें लाता हूँ या जो पुस्तकें उपहारमें मिली हैं और जिनका अपना एक इतिहास है, उन्हें भेंट करनेके लिए कहना तो ऐसा ही है जैसे कि मुझसे मेरा दायाँ हाथ माँगना। पता नहीं सुपरिंटेंडेंट को अपने अफसरोंको इस बात के लिए राजी करनेमें कि वे मेरे पास ये पुस्तकें रहने दें, कितनी चतुराई काममें लानी पड़ी होगी।

मुझे अब यह बताया गया है कि मैं अपने खर्चपर पत्रिकाएँ मँगा सकता हूँ। मैंने यह कहा था कि समाचारपत्र भी एक तरहसे पत्रिका ही है। वे मेरी इस बातसे सहमत लगते थे, फिर भी समाचारपत्रकी इजाजत मिल सकेगी, उन्हें इसमें सन्देह था। 'क्रॉनिकल' के रविवासरीय अंकका नाम लेनेकी मेरी हिम्मत नहीं हुई। लेकिन मैंने 'टाइम्स ऑफ इंडिया' के साप्ताहिक अंकके लिए कहा। सुपरिटेंडेंटको वह बहुत अधिक राजनीतिक लगा। 'पुलिस न्यूज', 'टिट-बिट्स' या 'ब्लैकवुडस्' के लिए मैं कह सकता था। परन्तु यह मामला सुपरिटेंडेंट के अधिकारसे बिलकुल बाह्रका है। पत्रिका किसे समझा जाये, यह अन्तिम रूपसे शायद सपरिषद् परमश्रेष्ठ गवर्नर महोदय ही निश्चित करेंगे।

इसके बाद चाकूके उपयोगका सवाल उठा। अपनी रोटी सेकने के लिए (बिना सेके मुझे रोटी हजम नहीं होती) मेरे लिए उसके पतले-पतले टुकड़े काट लेना जरूरी होता है और नीबू काटने के लिए भी चाकू जरूरी था। लेकिन चाकू एक 'घातक हथियार' माना गया, जिसका कैदीके हाथोंमें होना बहुत ही खतरनाक है। मैंने सुपरिटेंडेंट से कह दिया कि या तो वे रोटी और नींबू देना बन्द कर दें, या मुझे चाकू इस्तेमाल करने दें। आखिर मुझे अपना कलमतराश चाकू इस्तेमाल करनेकी इजाजत मिल गई। वह मेरे कैदी वार्डरके कब्जे में रहता है और जब मुझे जरूरत होती हैं तो दे दिया जाता है। हर रोज शामको वह जेलरके पास भेज दिया जाता है और सुबह फिर कैदी वार्डर के पास वापस आ जाता है।

आप शायद कैदी वार्डर नामके इस जीवको नहीं जानते। कैदी वार्डर लम्बी सजाएँ भुगतनेवाले ऐसे कैदी होते हैं जिन्हें उनके अच्छे बरतावके कारण एक वार्डरकी पोशाक पहननेको दे दी जाती है और उन्हें मामूली जिम्मेदारियाँ सौंप दी जाती हैं। इस तरहका एक वार्डर, जो हत्याके जुर्म में सजा काट रहा है, दिनमें मेरी निगरानी करता है और दूसरा, जिसे देखकर मुझे शौकत अलीके डील-डौलकी याद आ जाती है, रातमें मेरी निगरानी करता है। यह दूसरा वार्डर तब रखा गया जब इन्स्पेक्टर जनरलने आखिरकार मेरी कोठरीको खुला रहने देनेका फैसला किया। इन दोनोंसे ही मुझे कोई कष्ट नहीं हैं। वे मेरी बातोंमें कभी टाँग नहीं अड़ाते। मैं भी उनसे कभी कोई बातचीत नहीं करता। दिनवाले वार्डरसे मुझे अपनी कुछ जरूरतोंके लिए कहना होता है। लेकिन इसके अलावा मेरी उनसे और कोई बातचीत नहीं होती।

मैं एक त्रिभुजाकार खण्ड में रहता हूँ। इस त्रिभुजकी सबसे लम्बी भुजामें, जो पश्चिम की ओर है, ग्यारह कोठरियाँ हैं। आँगनमें मेरे साथ एक अरब राजबन्दी रहते हैं (मेरा ऐसा ही अनुमान है)। वे हिन्दुस्तानी नहीं बोल सकते और मुझे