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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


इसके साथ यह तथ्य भी जुड़ा हुआ है कि राजनीतिक उद्देश्योंके लिए जेलोंका दुरुपयोग हो रहा है, जिससे राजनीतिक कैदीपर जेलकी दीवारोंके भीतर भी राजनीतिक अत्याचार होता रहता है।

अपने जेल जीवनकी यह तसवीर मुझे अपनी दिनचर्या बताकर पूरी करनी चाहिए। मेरी कोठरी उम्दा—बिलकुल साफ-सुथरी—और हवादार है। बाहर सोनेकी इजाजत मेरे लिए एक वरदान है, क्योंकि मैं खुलेमें सोनेका आदी हूँ। में प्रातःकाल ४ बजे प्रार्थना के लिए उठ जाता हूँ। आश्रमवासियों को यह जानकर प्रसन्नता होगी कि मैं सवेरेकी प्रार्थना के श्लोकोंका बिना नागा पाठ करता हूँ और जो भजन मुझे याद हैं उनमें से एकाध भजन गा भी लेता हूँ। साढ़े छः बजे मैं अपना अध्ययन आरम्भ कर देता हूँ। रोशनी जलाने की इजाजत नहीं है। इसलिए जैसे ही पढ़ने लायक उजाला होता है मैं काम शुरू कर देता हूँ जो शामको सात बजे जाकर रुकता है, क्योंकि उसके बाद कृत्रिम प्रकाशके बिना लिखा-पढ़ा नहीं जा सकता। आश्रममें होनेवाली शामकी प्रार्थना कर चुकने के बाद आठ बजे में बिस्तरपर लेट जाता हूँ। मेरे अध्ययन में 'कुरान शरीफ', तुलसीकृत 'रामायण', श्री स्टैंडिंग द्वारा दी गई ईसाई धर्मकी पुस्तकें और उर्दूकी पढ़ाई शामिल है। छः घंटे अध्ययनमें और चार घंटे कताई और बुनाई में लगाता हूँ। पहले में कताईपर तीस मिनट ही लगाता था क्योंकि मेरे पास पूनियाँ बहुत कम थीं। अधिकारियोंने अब कृपापूर्वक मुझे कुछ रुई दे दी है। रुई बेहद गन्दी है। लेकिन धुनाई शुरू करनेवाले को शायद इससे अच्छी ट्रेनिंग मिल जाती है। मैं एक घंटा धुनाईमें और तीन घंटे कताईमें लगाता हूँ। अनसूयाबाईने और अब मगनलाल गांधीने कुछ पूनियाँ भेज दी हैं। मैं चाहूँगा कि वे अब और पूनियाँ न भेजें। उनमें से कोई एक अच्छी साफ रुई भेज सकता है, पर वह भी एक बारमें दो पौंडसे ज्यादा न हो। में खुद अपनी पूनियाँ बनाना चाहता हूँ। मेरा खयाल है कि हर कातनेवाले को धुनाई सीखनी चाहिए। पहले सबकके बाद ही मैं धुनाई करने लग गया था। कताईकी तुलनामें धुनाई बहुत आसानीसे सीखी जा सकती है, पर उसे करते रहना कठिन है।

कताई मुझपर हावी होती जा रही है। ऐसा लगता है कि दिन-प्रतिदिन में दरिद्रतम व्यक्ति होता जा रहा हूँ और उसी हिसाब से ईश्वरके अधिक निकट होता जा रहा हूँ। इन चार घंटोंको मैं दिनमें सबसे अधिक कीमती मानता हूँ। अपनी मेहनत का फल सामने नजर आने लगा है। इन चार घंटों में एक भी अपवित्र विचार मेरे मनमें नहीं आता। जब मैं 'गीता', 'कुरान शरीफ', 'रामायण' पढ़ता हूँ तो मन इधर-उधर भटकता है। परन्तु चरखा या धुनकी चलाते हुए मन एकाग्र हो जाता है। मैं जानता हूँ कि हरएकके लिए यह बात लागू नहीं होगी और न हो सकती है। मेरे मन में निर्धन भारतकी आर्थिक मुक्तिके साथ चरखेका ऐसा तादात्म्य स्थापित हो गया है कि मुझपर उसका जादू निराला ही है। कताई धुनाई और अध्ययन सम्बन्धी मेरी प्रवृत्तियों के बीच मनमें एक जबरदस्त खींचतान जारी है। इसलिए बहुत सम्भव है कि अपने अगले पत्र में आपको यह पढ़नेको मिले कि कताई और धुनाईके घंटे बढ़ गये हैं।