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पत्र : हकीम अजमलखाँको


कृपया मौलाना अब्दुल बारी साहब से कहिए कि मैं चाहता हूँ कि वे कताईमें, जिसे अभी-अभी शुरू करनेकी उन्होंने मुझे खबर दी है, मेरे साथ होड़ करें। उनकी मिसाल से बहुत से लोग इस महान् कार्यको अपना कर्त्तव्य समझकर अपना लेंगे।

आश्रमवासियोंको यह सूचना दी जा सकती हैं कि मैंने जिस पहली पोथीको लिखनेका वायदा किया था वह पूरी हो गई है। मैं समझता हूँ कि उसे उनके पास भेजने की मुझे अनुमति मिल जायेगी।[१] उम्मीद है कि धर्मकी पहली पोथी भी में पूरी कर ही लूँगा। मैंने दक्षिण आफ्रिका के संघर्षका इतिहास लिखनेका भी वायदा किया था।

तीन बारके बजाय मैं यहाँ केवल दो बार भोजन करता हूँ, क्योंकि उसमें सुविधा है। परन्तु मैं काफी खा लेता हूँ। भोजनके मामलेमें सुपरिटेंडेंट हर तरहकी सुविधा दे रहे हैं। पिछले कुछ दिनोंसे उन्होंने मेरे लिए बकरीके दूध और मक्खनकी व्यवस्था कर दी है और एक-दो दिनमें, आशा है, मैं खुद अपनी चपातियाँ बनाने लगूँगा।

मुझे दो बिलकुल नये भारी गर्म कम्बल, नारियलकी चटाई और दो चादरें मिली हुई हैं। अब एक तकिया भी दे दिया गया है। वैसे तो उसकी कोई खास जरूरत नहीं थी। मैं किताबोंका या अपने फाजिल कपड़ोंका तकिया बना लेता था। तकिया मुझे राजगोपालाचारीके साथ हुई बातचीतके फलस्वरूप दिया गया है। नहाने के लिए एकान्त स्थान है और प्रतिदिन नहानेकी इजाजत है। एक और कोठरी है; जब वह किसी और काम न आ रही हो तो मैं वहाँ काम कर सकता हूँ। सफाई वगैराकी व्यवस्था बिलकुल ठीक कर दी गई है।

इसलिए मित्रोंको मेरे बारेमें किसी तरह की चिन्ता करने की जरूरत नहीं है। मैं एक मुक्त पक्षीकी तरह खुश हूँ। और न मैं यही समझता हूँ कि मैं यहाँ बाहरसे कम उपयोगी काम कर रहा हूँ। यहाँ रहना मेरे लिए एक तरहका अनुशासन है। साथी कार्यकर्त्ताओं से बिछोह होनेकी जरूरत थी ताकि यह जाना जा सके कि हमारा कोई जीवन्त संगठन है या इसका दारमदार केवल एक आदमीपर है और यह चार दिनोंकी चाँदनी-भर है? मेरे मनमें तो कोई संशय नहीं है, इसलिए मुझे यह जाननेकी भी उत्सुकता नहीं है कि बाहर क्या हो रहा है। यदि मेरी प्रार्थना सच्ची है और वह अहंकाररहित हृदयसे निकलती है तो मैं जानता हूँ कि वह निश्चय ही किसी भी प्रपंचसे कहीं अधिक फल प्रदायिनी होगी।

मुझे दासके स्वास्थ्यकी चिन्ता है। उनकी सहधर्मिणीसे मुझे सदा यह शिकायत रहेगी कि वे मुझे उनके स्वास्थ्यके बारेमें नियमित खबर नहीं देतीं। आशा है, मोतीलालजीका दमा अब ठीक हो गया होगा।

श्रीमती गांधीको कृपया समझाइए कि वे मुझसे मुलाकात करनेका विचार न करें। देवदासने, जब वह मुझसे मिलने आया, एक तमाशा-सा खड़ा कर दिया था। उसे जब सुपरिंटेंडेंट के दफ्तर में लाया गया तो वहाँ मेरा खड़ा रहना उसे बर्दाश्त नहीं हुआ।

  1. जेल अधिकारियोंने गांधीजीको इस गुजराती बालपोथीको पाण्डुलिपि आश्रम भेजनेकी अनुमति नहीं दी थी; देखिए "पत्र : यरवदा जेलके सुपरिटेंडेंटको", १२-८-१९२२।

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