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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


इसलिए जो सुधार आवश्यक प्रतीत हो सकते हैं, वह सब करवाकर जबतक सरकार कैदी के पत्रको भेज नहीं देती तबतक कैदीके अपने मित्रोंको अपनी कुशल क्षेमका पत्र भेजने के अपने अधिकारका उपयोग करनेकी कोई इच्छा नहीं है, क्योंकि सरकारने उक्त आदेशके अधीन जो प्रतिबन्ध लगाये हैं, उनसे उक्त अधिकार व्यर्थ ही हो जाता है।

मो॰ क॰ गांधी
कैदी सं॰ ८६७७

हस्तलिखित अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ८०१३) तथा यंग इंडिया, २८–२–१९२४ से।
 

६४. पत्र : हकीम अजमल खाँको[१]'

यरवदा जेल
१२ मई, १९२२

प्रिय हकीमजी,

१४ अप्रैलको मैंने आपको एक लम्बा पत्र लिखा था, जिसमें मेरे बारेमें सभी बातें आ गई थीं। औरोंके अलावा, उसमें श्रीमती गांधी और देवदासके लिए भी सन्देश थे। सरकारने अभी-अभी यह आदेश दिया है कि जबतक मैं उसके मुख्य अंश न हटा दूँ वह पत्र आपके पास नहीं भेजा जायेगा। अपने इस फैसलेके उसने कारण भी बताये। पर चूँकि मुझे उस आदेशकी नकल देने से इनकार कर दिया गया है, इसलिए मैं उसे न तो हूबहू आपके पास भेज सकता हूँ और न स्मृतिसे ही उसका आशय व्यक्त कर सकता हूँ।

मैंने सरकारको एक पत्र लिखा है जिसमें उक्त कारणोंके औचित्यपर आपत्ति उठाई है और यह कहा है कि यदि वह मेरे पत्रमें कोई मिथ्या कथन या अतिरंजना दिखाये तो मैं उसे सुधारने को तैयार हूँ। मैंने उसे यह भी बता दिया है कि यदि मैं अपना पत्र बिना काट-छाँट किये नहीं भेज सकता, तो फिर मित्रोंको नियमित पत्र लिखने की भी मेरी कोई इच्छा नहीं है; क्योंकि तब उसका कोई मूल्य नहीं रहता। इसलिए यदि सरकारने अपना फैसला नहीं बदला तो जेलसे आपको या अन्य मित्रोंको यह मेरा प्रथम और अन्तिम पत्र होगा।

आशा है आप अच्छी तरह होंगे,

हकीम अजमलखाँ
दिल्ली

हृदयसे आपका,
मो॰ क॰ गांधी
कैदी सं॰ ८६७७

हस्तलिखित अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ८०१२) तथा यंग इंडिया, २८–२–१९२४ से।
  1. जेल अधिकारियोंने इस पत्र को भी रोक लिया था।