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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

ही देर के बाद देखा कि टाटके कपड़े पहने हुए चार या पाँच युवक ले जाये जा रहे हैं। एककी पीठ खुली थी। वे बहुत धीरे-धीरे चल रहे थे। उनकी कमर झुकी हुई थीं। मैंने देखा कि उन्हें बहुत दर्द हो रहा था। उन्होंने मुझे प्रणाम किया। मैंने भी जवाब में नमस्कार किया। मैंने अन्दाज लगाया कि हो न हो इन्हींको कोड़े लगाये गये हैं। उसी दिन बादमें मैंने एक प्रतिष्ठित पुरुषको बेड़ियाँ तथा टाटके कपड़े पहने हुए गुजरते देखा। उन्होंने भी मुझे प्रणाम किया। मैं सामान्यतया ऐसा नहीं करता, फिर भी मैंने पूछा, आप कौन हैं? उन्होंने जवाब में कहा, मैं मूलशीपेटाका हूँ। मैंने पूछा, क्या आप जानते हैं, कोड़े किनको लगाये गये थे? उन्होंने कहा, हाँ, मैं उन सबको जानता हूँ, क्योंकि वे सब मूलशीपेटाके ही लोग हैं।

मेरा पत्र लिखनेका उद्देश्य यह जानना है कि क्या मैं उन लोगोंसे मिल सकता हूँ, जो काम करनेसे इनकार कर रहे हैं?[१] यदि मुझे मालूम हुआ कि वे मूर्खतावश या बिना सोचे-समझे ऐसा कर रहे हैं तो सम्भव है कि मैं उन्हें अपनी स्थितिपर फिर विचार करनेके लिए राजी कर सकूँ। सत्याग्रह में तो विहित है कि हर कैदी जेलके तमाम उचित कानूनोंका पालन करे और जो काम दिया जाये उसे अवश्य करे। सच पूछा जाये तो सत्याग्रहीके जेलके अन्दर आते ही उसका प्रतिरोध समाप्त हो जाता है। असाधारण कारण होनेपर जैसे जान-बूझकर अपमान किये जानेपर उसका फिर उपयोग किया जा सकता है। यदि ये लोग अपनेको सत्याग्रही कहते हैं तो मैं चाहूँगा कि मैं उन्हें ये सब बातें समझा दूं।

मैं जानता हूँ कि आम तौरपर किसी कैदीको जेलके प्रशासनमें मदद करने या दखल देनेका हक नहीं है। मैं केवल साधारण मनुष्यताके नामपर इस सुझावका अनुकूल उत्तर पानेकी आशा रखता हूँ। मुझे भरोसा है कि यदि थोड़ी भी गुंजाइश हुई तो आप कोड़ेका दण्ड न दिये जानेके बारेमें पूरी कोशिश करेंगे। मैंने अत्यन्त नम्र भावसे एक सम्भावनाकी ओर इशारा किया है, आशा करता हूँ कि आपका हृदय मेरे सुझावको उचित[२] मानेगा और आप उसपर अमल करनेकी कृपा करेंगे।

आपका सच्चा,
मो॰ क॰ गांधी

अंग्रेजी मसविदे (एस॰ एन॰ ८०१९) की फोटो नकल तथा यंग इंडिया, ६-३-१९२४ से।
  1. उन्हें अनाज पीसनेका काम दिया गया था, लेकिन उन्होंने उसे राजनीतिक बंदियोंके योग्य काम नहीं माना।
  2. मेजर जोन्सने जवाबमें गांधीजीको धन्यवाद देते हुए लिखा कि सुझावको स्वीकार करना सम्भव नहीं है।