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पत्र : यवरदा जेलके सुपरिटेंडेंट को


मैं जानता हूँ कि आम तौरपर कैदियोंको जेलके प्रबन्धमें मदद करने या दखल देनेकी इजाजत नहीं है। परन्तु मुझे आशा है कि उपर्युक्त मामले में प्रशासनिक पद्धतिकी अपेक्षा मनुष्यता के विचारको प्रधानता दी जायेगी।[१]

आपका आज्ञाकारी,
मो॰ क॰ गांधी

अंग्रेजी मसविदे (एस॰ एन॰ ८०२१) की फोटो नकल तथा यंग इंडिया, ६-३-१९२४ से।

 

७६. पत्र : यरवदा जेलके सुपरिंटेंडेंटको

यरवदा सेन्ट्रल जेल
२३ फरवरी, १९२३

सुपरिटेंडेंट
यरवदा सेन्ट्रल जेल
[महोदय,]

आपने कृपा करके आज मुझे बताया कि आपको सरकारसे मेरे इस मासको ४ तारीख के पत्रका उत्तर मिल गया है। मेरी पत्नीको जो असुविधा हुई थी उसके लिए सरकारने खेद प्रकट किया है; और मेरे पत्रके अन्य अंशोंके जवाब में सरकारने बताया है कि सरकार एक कैदी के साथ जेलके सामान्य विनियमोंपर चर्चा नहीं कर सकती। मैं सरकार द्वारा, मेरी पत्नीकी असुविधापर अफसोस जाहिर करनेकी भावनाकी कद्र करता हूँ।

सरकारके उत्तरके दूसरे अंशके बारेमें निवेदन है कि मैं इस बातको भली-भाँति जानता हूँ कि एक कैदीके नाते जेलके सामान्य विनियमोंके बारेमें मुझे चर्चा करनेका अधिकार नहीं है। यदि सरकार मेरा ४ तारीखका पत्र दुबारा पढ़े तो मालूम हो जायेगा कि मैंने उक्त विनियमोंपर सामान्य चर्चाकी माँग नहीं की है, बल्कि कतिपय विनियमोंके बारेमें यह जानना चाहा है कि उनका व्यावहारिक रूप क्या होगा और सो भी उसी हदतक जहाँतक उनका मेरे रहन-सहन और सुख-सुविधासे सम्बन्ध है। मेरा खयाल है कि किसी भी कैदीको ऐसी जानकारी माँगने और प्राप्त करनेका हक है। यदि मुझे भविष्य में अपनी पत्नी या मित्रोंसे मुलाकात करनी हो, तो मुझे यह बात बता देनी चाहिए कि मैं किससे भेंट कर सकता हूँ और किससे नहीं; ताकि निराशा से बचा जा सके और अपमानकी सम्भावनाको भी टाला जा सके।

मैं अपनी स्थिति स्पष्ट करना चाहता हूँ। सौभाग्य से मेरे ऐसे बहुतसे मित्र हैं, जो मुझे अपने सम्बन्धियोंके समान प्रिय हैं। और मेरी देखरेखमें पलनेवाले कुछ ऐसे बच्चे भी हैं, जो मेरे अपने बच्चों-जैसे ही हैं। फिर मेरे ऐसे सहयोगी भी हैं

  1. सरकारने गांधीजीका सुझाव नहीं माना। देखिए पिछले शीर्षकको अन्तिम पाद-टिप्पणी।