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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

बारेमें मैंने जो पूछताछ की थी उसके उत्तरमें उन्होंने मुझे सरकारके पत्रका अन्तिम अंश पढ़ लेनेको लिखा है।

इन्स्पेक्टर जनरलने जिस तत्परतासे जवाब दिया, उसके लिए उन्हें बधाई है। किन्तु उन्होंने जो रुख अपना रखा है उसपर मुझे बड़ा अफसोस होता है। पत्रिकाओंके बारेमें निर्णय देनेके उनके अधिकारपर मैंने कभी शंका नहीं उठाई। उन्होंने सरकारके पत्रका जो अनुच्छेद मुझसे पढ़नेके लिए कहा है, उससे मुझे तनिक भी सन्तोष नहीं हुआ। उसमें कहा गया है कि सुपरिंटेंडेंट कैदियोंसे जेलके सामान्य विनियमोंके बारेमें चर्चा नहीं कर सकता। मैंने इन्स्पेक्टर जनरलसे अपने प्रति ऐसी किसी चर्चाकी प्रार्थना नहीं की। मैंने तो केवल उनके निर्णयके कारण जानने चाहे हैं। मैं उन्हें याद दिलाता हूँ कि जब वे स्वयं सुपरिटेंडेंट थे और मेरी तरफसे उन्होंने सरकार से 'मॉडर्न रिव्यू' की माँग की थी, तब सरकारने उसे अस्वीकृत करनेके कारण दिये थे। मैं कहना चाहता हूँ कि यह मामला उस मामलेसे तनिक भी भिन्न नहीं है।

इसके सिवा इन्स्पेक्टर जनरलकी मेरे साथ जो बातें हुई हैं, उनसे वे जान गये हैं कि पत्रिकाओंके उपयोगकी मनाहीको में न्यायाधीश द्वारा दी गई सजाके अतिरिक्त एक सजा मानता हूँ। मुझे इसमें कोई शक नहीं है कि हम लोगोंको हर मामलेमें समर्थ अधिकारियों द्वारा दी जानेवाली सजाओंका कारण जाननेका हक है।

मैं इन्स्पेक्टर जनरलकी शानको ध्यान में रखते हुए निवेदन करना चाहता हूँ कि सरकार कैदियोंके प्रति जैसी उपेक्षाकी दर्पपूर्ण मनोवृत्ति अपना सकती है, वैसी मनोवृत्ति वे नहीं अपना सकते। जिन दिनों वे सुपरिटेंडेंट थे उन दिनों उन्होंने मुझपर यह छाप छोड़ी थी कि जेलके किसी भी सुपरिटेंडेंटका जेलके अनुशासनका निश्चित रूपसे पालन कराते हुए यह भी कर्त्तव्य है कि वह उसी दृढ़ता के साथ कैदियोंके स्वत्वोंकी रक्षा भी करे। फलस्वरूप में मानने लगा था कि जेलका सुपरिटेंडेंट अपनी देखभाल में रखे गये कैदियोंका वास्तवमें अभिभावक है। यदि यह बात सही हो तो मैं मान लेता हूँ कि इन्स्पेक्टर जनरल कैदियोंके बड़े अभिभावक हैं और इसलिए कैदी उनसे यह आशा रखते हैं कि यदि सरकार उनके उचित अधिकारोंकी उपेक्षा या अवहेलना करे, तो वे सरकारपर जोर डालकर उन्हें उनके उचित अधिकार दिलायें और कैदी उनसे यह भी अपेक्षा रखता है कि वे उसकी उचित पूछताछको टालने के बजाय उसको यथा सम्भव युक्ति-संगत रूपसे सन्तुष्ट करनेका प्रयत्न करें।

इस पत्र-व्यवहारको चलाते जानेका मुझे खेद है। परन्तु सही हो या गलत मेरी यह मान्यता है कि कैदी के नाते मेरे भी कुछ अधिकार हैं, उदाहरणार्थ, शुद्ध जल, वायु, आहार और वस्त्र प्राप्त करनेका अधिकार। इसी प्रकार में जिस मानसिक भोजनका आदी हूँ उसे पानेका भी मेरा हक है। में कोई मेहरबानी नहीं चाहता, और यदि इन्स्पेक्टर जनरलको यह खयाल हो कि मुझे कोई भी चीज या सुविधा मेहरबानी के तौरपर दी गई है तो मैं चाहता हूँ कि वह वापस ले ली जाये। परन्तु पत्रिकाएँ पानेके अधिकारको में उपयुक्त भोजन पानेके बराबर महत्त्वपूर्ण मानता हूँ। इसलिए मैं उनसे नम्रतापूर्वक कहना चाहता हूँ कि उनके निर्णयके कारण जानने के