८०. पत्र : यरवदा जेलके सुपरिंटेंडेंटको
१६ अप्रैल, १९२३
सुपरिंटेंडेंट
यरवदा सेन्ट्रल जेल
महोदय,
छः महीने से भी अधिक समय पूर्व मेरे लिए यहाँ 'लाइफ ऐंड टीचिंग्स ऑफ बुद्ध' नामकी पुस्तक भेजी गई थी। गत जनवरीके लगभग अन्तमें मेरी पत्नी मेरे लिए एक धार्मिक मासिक पत्रिका लाई थी। यह मासिक पत्रिका आपके कार्यालय में दे दी गई थी। पिछले चार महीनेसे यहाँ हिन्दीका एक पाक्षिक पत्र भेजा जा रहा है, जिसमें, हिन्दी, तमिल और तेलुगू के पाठ होते हैं। इस पत्रके चार अंक मुझे दिये जा चुके हैं।
सरकारने 'सरस्वती' नामकी हिन्दी मासिक पत्रिका देनेकी भी स्वीकृति दी है। किन्तु मेरे यहाँ आने के बाद मुझे इसके पहले तीन अंक ही मिले हैं। उसके बाद के अंक मुझे नहीं दिये गये। पिछली भेंटके समय मैंने अपनी पत्नीसे कहा था कि मुझे कुछ किताबें चाहिए। मुझे उनका पार्सल कबका मिल जाना चाहिए था। क्या आप मुझे बताने की कृपा करेंगे :
- (क) 'लाइफ ऐंड टीचिंग्स ऑफ बुद्ध' नामक पुस्तकका क्या हुआ?#(ख) मेरी पत्नी जो धार्मिक मासिक पत्र लाई थी, उसका क्या हुआ?
- (ग) हिन्दी, तमिल और तेलुगू पाक्षिक पत्रके शेष अंक आपको मिले हैं या नहीं। यदि मिले हैं तो क्या मैं उन्हें प्राप्त कर सकता हूँ?
- (घ) क्या 'सरस्वती' आई है? यदि नहीं आई है तो क्या सत्याग्रह आश्रम, साबरमती के व्यवस्थापकको पत्र लिखकर यह कहा जा सकता है कि इस पत्रिकाके पिछले जूनके बादके अंक, जो यहाँ नहीं आये, वे भिजवा दिये जायें?
- (ड़) मेरी पत्नी द्वारा भेजा हुआ जो पार्सल आनेवाला था, क्या वह चुका है?
- (च) क्या कुछ दूसरी पुस्तकें अथवा मासिक पत्रिकाएँ ऐसी हैं जो आपको मिली तो हैं किन्तु मुझे नहीं दी गई?
मैं चाहता हूँ कि मेरे लिए यहाँ भेजी गई पुस्तकों अथवा पत्रिकाओं में से कोई पुस्तक या पत्रिका गुम न हो जाये। इसलिए यदि उनमें से मुझे कुछ न भी दी जानी हों तो मैं चाहूँगा कि ऐसी निषिद्ध पुस्तकों और पत्रिकाओंके नाम मुझ