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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

तमाम कैदियोंसे मिलने दिया जाये जिससे मैं उन्हें जेलका अनुशासन मानने के लिए प्रेरित कर सकूँ। सरकारने सुझाव के लिए धन्यवाद तो दिया; पर उसे स्वीकार नहीं किया। मैंने अपनी प्रार्थनापर आगे जोर नहीं दिया; क्योंकि मैं इतनी आशा तो लगा ही बैठा था कि अब ऐसे कैदियोंको कोड़े लगाने की नौबत नहीं आयेगी। लेकिन मेरी आशा पूरी नहीं हुई और तबसे अनेक बार कोड़े लगाये जा चुके हैं।

मुझे विश्वास है कि यदि मैं उन कैदियोंसे मिल पाऊँ तो मैं उनको यह समझा सकूँगा कि उनके कैद होनेका वास्तविक अर्थ क्या है; और बता सकूँगा कि उन्हें न तो कामसे जी चुराना चाहिए, न हुक्म उदूली और गुस्ताखी करनी चाहिए—जैसा कि कहा जाता है, उन्होंने की है। मेरा यह भी अनुरोध है कि उनके पास मेरे रहने की व्यवस्था कर दी जाये जिससे मैं समय-समयपर उन्हें समझा-बुझा सकूँ। यदि यह सम्भव न हो तो मेरा सादर निवेदन है कि जितनी बार उनसे मिलना जरूरी हो उतनी बार मिलनेकी मुझे इजाजत दी जाये।

मैं जानता हूँ कि एक कैदीकी हैसियतसे में न तो ऐसी इजाजत मांग सकता हूँ और न उसे पाने का मुझे हक है; परन्तु मैं आपसे विनयपूर्वक एक मनुष्यके नाते एक मानवीय उद्देश्य की पूर्ति के लिए यह प्रार्थना कर रहा हूँ। मुझे विश्वास है कि यदि किसी सूरतसे कोड़े लगाने की सजा टाली जा सके तो सरकार यह सजा हरगिज नहीं देना चाहेगी; खास तौरपर उन लोगोंको जो सही या गलत तौरपर, अपनी अन्त- रात्मा की प्रेरणासे स्वयं जेल आये हैं। जब मैं ऐसा कहता हूँ कि इस प्रकारके दण्डसे मेरे हृदयको बड़ी ही व्यथा होती है तो सरकार उसे उचित ही समझेगी—विशेषकर जब मुझे विश्वास है कि मेरे उनके साथ रख दिये जानेपर ऐसे अवसरोंको टाला जा सकता है। आशा है कि सरकार मेरे इस कथनकी कद्र करेगी।

मैंने जिस भावनासे पत्र लिखा है, भरोसा है कि सरकार उसी भावनाके अनुरूप उत्तर देगी और सेवा सम्बन्धी मेरे प्रस्तावको ठुकराकर मुझे अत्यन्त विषम परिस्थिति में नहीं ला पटकेगी। क्योंकि उस अवस्थामें मुझे कुछ-न-कुछ करनेपर मजबूर होना पड़ेगा जिसके फलस्वरूप, मेरी इच्छा न होते हुए भी, सरकार उलझन में पड़ जा सकती है।[१] जबतक मैं जेल में हूँ तबतक मैं यह नहीं चाहता कि मेरे किसी भी कामसे, जिसे मैं सम्भवतः टाल सकता हूँ, सरकारको उलझन हो।

यह देखते हुए कि इस मामले को लेकर कुछ कैदी अनशन कर रहे हैं, प्रार्थना है कि उत्तर यथासम्भव शीघ्र दिया जाये।

आपका आज्ञाकारी,
मो॰ क॰ गांधी
नं॰ ८२७

अंग्रेजी मसविदे (एस॰ एन॰ ८०३०) की फोटो नकल तथा यंग इंडिया, ६-३-१९२३ से।

  1. गांधीजीका आशय उपवास शुरू करनेसे है; देखिए अगला शीर्षक।