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८५. पत्र : यरवदा जेलके सुपरिंटेंडेंटको

यरवदा सेन्ट्रल जेल
९ जुलाई, १९२३

सुपरिटेंडेंट
यरवदा सेन्ट्रल जेल
महोदय,

आपको याद होगा कि अभी हाल ही में मूलशीपेटाके कुछ कैदियोंको कोड़े लगाये गये थे और मैंने उसके बारेमें आपको गत मासकी २९ तारीखको एक पत्र लिखा था। इस दण्डके विरोध में मूलशीपेटाके कुछ कैदी तभीसे अनशन कर रहे हैं। इनमें से कुछने कमजोर हो जानेके कारण अनशन छोड़ दिया है।

मैंने यह आशा की थी कि सरकार मेरी प्रार्थनाके कारण न सही उनके अनशनको ध्यान में रखकर ही मेरे पत्रमें सुझाये गये प्रस्तावका उत्तर जल्दी ही दे देगी। इस बातको दस दिन हो गये हैं; किन्तु अभीतक सरकारसे कोई उत्तर नहीं मिला है।

ज्यों-ज्यों समय बीतता जाता है, त्यों-त्यों मेरा मानसिक उद्वेग बढ़ता जाता है। मैंने अपने मनको बार-बार समझानेका प्रयत्न किया है कि मैं आखिरकार एक कैदी ही हूँ, इसलिए मुझे यह नहीं सोचना चाहिए कि दूसरे कैदियोंके साथ कैसा व्यवहार किया जा रहा है। किन्तु मैं स्वीकार करता हूँ कि मैं इसमें असफल हो गया हूँ। मैं यह नहीं भूल सकता कि मैं एक मनुष्य अथवा सार्वजनिक कार्यकर्त्ता और सुधारक भी हूँ। सही कहिए या गलत, मैं यह अनुभव करता हूँ कि यदि मैं अनशनकारियोंसे मिल सकूँ तो उनका अनशन, जिसे आप अनुचित मानते हैं, और मैं भी ऐसा ही विश्वास करता हूँ, समाप्त हो जायेंगे। यदि इस जेल में उपवास करनेवाला व्यक्ति अजनबी न होकर मेरा भाई हो और फिर मुझसे यह आशा की जाये कि मैं उसके अनशनके प्रति उसी प्रकार उदासीन रहूँ जिस प्रकार कि कैदियोंसे अपने साथियोंके प्रति रहनेकी अपेक्षा जाती है तो यह आश्चर्यकी बात होगी। मैं इन अनशनकारी कैदियोंके बारेमें ठीक वैसा ही अनुभव करता हूँ जैसा कि मैं अपने सगे भाईके बारेमें करता। यद्यपि ऐसा कहना यहाँ असंगत होगा, फिर भी बता देता हूँ कि इनमें से दो मेरे सुपरिचित हैं और अपने-अपने क्षेत्रके समाजमें उन्हें काफी ऊँचा स्थान प्राप्त है।

यह स्थिति मेरे लिए लगभग असह्य हो गई है। इसलिए यदि आज शामतक मेरे प्रस्तावका कोई सन्तोषप्रद उत्तर नहीं आता तो मैं किसी अन्य कारणसे नहीं बल्कि विशुद्ध रूपसे अपनी आत्माको सान्त्वना देनेकी खातिर कलसे अनशन आरम्भ कर दूँगा। मैं पानी या नमक लेता रहूँगा। इस समस्याका कोई सन्तोषप्रद समाधान होने तक, अर्थात् इन कैदियोंका अनशन समाप्त होने और मेरे पिछले मासकी २९ तारीख पत्र में दिये गये प्रस्तावपर पूरी तरह अमल किये जाने तक मैं अनशन जारी रखूँगा।