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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मैं जानता हूँ कि मेरे इस निर्णयसे आपको दुःख होगा। आप मुझपर असाधारण रूपसे कृपालु रहे हैं और मेरा बहुत अधिक खयाल करते रहे हैं। मैं यह भी जानता हूँ कि इससे सम्भवतः सरकारको भी कुछ परेशानी हो। किन्तु मुझे आशा है कि आप और सरकार दोनों ही इसमें मेरी नैतिक कठिनाईका विचार करेंगे।

सरकार मेरे प्रस्तावको मानकर चाहे जब इस दुर्भाग्यपूर्ण स्थितिका अन्त कर सकती है।

मेरा अनशन इसलिए नहीं होगा कि मूलशीपेटाके कैदी अनशन कर रहे हैं, बल्कि यह इसलिए होगा कि वर्तमान अनशनको समाप्त कराने और जिन घटनाओंका परिणाम यह अनशन है उनकी पुनरावृत्ति रोकने में सहायता देनेके लिए मुझपर प्रतिबन्ध लगाया गया है; और जब कि मैं यह विश्वास करता हूँ कि मैं इस कार्यमें सहायता कर सकता हूँ।

मैं जेलकी व्यवस्था में कोई हस्तक्षेप नहीं करना चाहता। किन्तु मेरी विनम्र सम्मति में जहाँ मानवताका प्रश्न आता है वहाँ जेलके प्रशासकोंकी प्रतिष्ठाका प्रश्न गौण हो जाता है। मेरा अनुमान है कि यदि एक भी कैदीके ऐच्छिक सहयोग से मानवताका हित सधता है तो कोई भी सभ्य सरकार उसे सहर्ष स्वीकार कर लेगी।

आपका आज्ञाकारी,

अंग्रेजी मसविदे (एस॰ एन॰ ८०३१) की फोटो-नकलसे।

 

८६. पत्र : एफ॰ सी॰ ग्रिफिथको

यरवदा सेन्ट्रल जेल
१७ जुलाई, १९२३

प्रिय श्री ग्रिफिथ

,

मेरे सन्देशका आपने जो उत्तर दिया है कल सुपरिंटेंडेंटने उससे मुझे अवगत किया।

मैं उसका जवाब दे रहा हूँ।

आपने गत सप्ताहकी भेंटके समय मुझे बताया था कि परमश्रेष्ठ मुझे मूलशीपेटाके अनशन करनेवाले सत्याग्रहियोंसे मिलनेकी अनुमति देनेके लिए तैयार हैं और अधिकारियों के साथ मारपीट करनेवालों को छोड़कर अन्य सत्याग्रही कैदियोंको बेंत न लगाने के उचित निर्देश भी देना चाहते हैं, किन्तु लगता है, वे सरकार द्वारा स्वीकृति दे देनेके बाद भी मेरे इसी मासकी ९ तारीख के पत्रके कारण मेरे प्रस्तावोंपर विचार तक नहीं करना चाहते। उनका खयाल है कि मैंने अपने इस पत्र में अनशनकी बात कही है, वह एक धमकी है। मैंने पिछले गुरुवारकी बातचीत में आपसे जो कुछ कहा था उसे मैं यहाँ फिर दुहराता हूँ। सरकारको धमकी देनेकी मेरी इच्छा कदापि नहीं थी। जैसा मैं उक्त पत्र में पहले ही बता चुका हूँ कि मेरा अपेक्षित अनशन मेरे