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पत्र : एफ॰ सी॰ ग्रिफिथको

लिए एक विशुद्ध नैतिक कदम है। अनशनकारियोंसे भेंट करने की अनुमति न मिलनेकी अवस्थामें एक कैदीकी हैसियतसे मेरा यह कर्त्तव्य था कि मैं अपनी अनशन करनेकी इच्छा के बारेमें सुपरिटेंडेंटको सूचित कर दूँ। मैं यह जानता था कि मेरे अनशन से सरकारको, जिसका मेरे शरीरपर नियन्त्रण है, परेशानी हो सकती है; किन्तु मुझे अनुभव हुआ कि मेरा अपने इस स्पष्ट कर्त्तव्यका त्याग करना अपनी अन्तरात्मापर बलात्कार करना होगा। और यदि सरकारने मानवीयताका स्पष्ट मार्ग ग्रहण न किया तो सम्भव है मेरी इच्छा न होते हुए भी सरकारको मेरे अनशनके कारण परेशानी उठानी पड़े। फिर भी अपने उक्त पत्र और तबसे लेकर अबतक तथा उससे पहले इस अनशनके सम्बन्धमें की गई अपनी सारी कार्रवाईका मैंने जो अर्थ लगाया है उसपर जोर देनेके लिए मैंने आपसे यह कहा था कि मैं इस बातको स्वीकार किये बिना कि मैंने वह पत्र सरकारको कोई धमकी देनेके इरादेसे लिखा था, मैं उसे रद करने तथा परमश्रेष्ठके इस आश्वासनपर विश्वास करनेके लिए तैयार हूँ कि यदि उनको मेरे अनशन करनेके विचारकी बात मालूम न होती तो वे मेरी प्रार्थनाको उसके औचित्यके आधारपर भी स्वीकार कर लेते। अपने पत्रके सम्बन्धमें दिया गया मेरा स्पष्टीकरण स्वीकार करने और उन अनशनकारी दो सत्याग्रहियोंसे, जिनके नाम मैंने आपको बताये हैं, मुझे मिलने की अनुमति देनेका आपको अधिकार दिया गया है, इसके लिए मैं आभारी हूँ।

आशा है बेंतकी सजाके सम्बन्धमें निर्देश दे दिये गये होंगे।

यदि इसमें कोई बात छूट गई हो या कोई भूल रह गई हो तो आप कृपा करके मुझे बताने में संकोच न करें।

हृदयसे आपका,

अंग्रेजी मसविदे (एस॰ एन॰ ८०३२) की फोटो-नकलसे।

 

८७. पत्र : एफ॰ सी॰ ग्रिफिथको

यरवदा सेन्ट्रल जेल
२४ जुलाई, १९२३

प्रिय श्री ग्रिफिथ,

इस मासकी १२ तारीखको मुझसे मिलनेपर आपने यह बताया था कि परमश्रेष्ठ गवर्नरको मेरे इस मासकी ९ तारीखके पत्र में धमकीका आभास मिला है। मुझे इसपर आश्चर्य हुआ है। मैंने उस समय आपसे जो कुछ कहा था, मैं अब भी उसे दुहराना चाहूँगा कि उस पत्रके द्वारा सरकारको किसी प्रकारकी धमकी देनेका मेरा कोई इरादा नहीं था और यदि इस आश्वासनके बावजूद परमश्रेष्ठको उस पत्रमें अब भी धमकी दी गई जान पड़ती है तो मान लिया जाये कि मैंने उस पत्रको बिलकुल रद कर दिया है या वापस ले लिया है।