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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

यह जानकर कि परमश्रेष्ठ मेरी प्रार्थनाको उसके औचित्यके आधारपर स्वीकार कर सकते हैं, मुझे दरअसल और भी ज्यादा खुशी होती है। आपने मुझे बताया कि परमश्रेष्ठने हमारी बातचीत के प्रायः तुरन्त बाद ही आगे बेंत न लगानेकी आज्ञा दे दी थी। इसके लिए कृपया उन्हें मेरी ओरसे धन्यवाद दे दें। मुझे यह देखकर खुशी होती है कि उस आज्ञाका क्षेत्र, जितना मैं चाहता था वस्तुतः उससे भी कहीं अधिक विस्तृत है।[१]

आपका सच्चा,
मो॰ क॰ गां॰

एफ॰ सी॰ ग्रिफिथ, सी॰ एस॰ के॰, ओ॰ बी॰ ई॰

अंग्रेजी मसविदे (एस॰ एन॰ ८०३३) की फोटोनकलसे।
 

८८. पत्र : यरवदा जेलके सुपरिंटेंडेंटको

यरवदा सेन्ट्रल जेल
१४ अगस्त, १९२३

सुपरिंटेंडेंट
यरवदा सेन्ट्रल जेल
महोदय,

कल गवर्नर महोदय[२] और मेरे बीच हुई बातचीत के सन्दर्भमें मैं यह निवेदन करना चाहता हूँ :

मैं मानता हूँ कि सरकार द्वारा बनाये गये विशेष वर्ग विनियमोंके विषय में मुझे सदैव यह लगा है कि सरकारने सच्चे हृदयसे किसी ऐसे वर्गके उपबन्धकी आवश्यकताको स्वीकार नहीं किया है; बल्कि अनिच्छापूर्वक और कुछ लोकमतके दबावमें महज कागजी रियायत दी है। कल जब परमश्रेष्ठ कृपापूर्वक मेरे पास पूछताछ के लिए आये तब यदि उन्होंने मुझे अपने मनकी सभी बातें कहने के लिए न कहा होता तो मैं किसी विवादास्पद विषयको न छेड़ता और न उसपर चर्चा करता। किन्तु मेरे विशेष वर्गसे सम्बन्धित प्रश्नका उल्लेख करनेपर परमश्रेष्ठने जो कुछ कहा, मैं उसके लिए बिलकुल तैयार नहीं था। सरकार की नीयतके सम्बन्धमें मुझे जो सन्देह है उसे यदि सम्भव हो तो मैं मनसे निकाल देना चाहता हूँ। और अब यह जानने के बाद कि

  1. उक्त पत्र २५ तारीखको संशोधन करके उसके स्थानपर यह रखा गया : "मुझे यह कहने की शायद ही जरूरत हो कि परमश्रेष्ठको मेरे पत्र में कोई धमकी दिखाई दी इसका मुझे खेद है।"
  2. आशय गवर्नर सर जॉर्ज लॉयड्से है जो १३ अगस्तको जेलका निरीक्षण करने आये थे।