परमश्रेष्ठने ही स्वयं इन विनियमोंको तैयार किया है, मेरी यह इच्छा और भी तीव्र हो गई है।
परमश्रेष्ठने कल जिस विश्वाससे कहा उसके बावजूद मैं यह अनुभव करता हूँ कि कड़ी सजाके भागी विशिष्ट कैदियोंको विशेष वर्ग में रखने में कोई कानूनी रुकावट नहीं है। यदि ऐसी कोई कानूनी रुकावट है तो मैं उस कानूनको देखना चाहूँगा।
मैं आदरपूर्वक यह भी बताना चाहता हूँ कि परमश्रेष्ठके मनमें यह गलत धारणा घर कर गई है कि सजाओंमें फेरफार सिर्फ अदालतें ही कर सकती हैं। यद्यपि मैं इस जेल में थोड़े ही दिनसे हूँ फिर भी मैंने देखा है कि प्रशासनिक आदेशके अन्तर्गत कितने ही कैदी वक्तसे पहले छोड़ दिये गये हैं। मैंने जो मुद्दा उठाया था सो केवल यही था कि यदि इस प्रकार कड़ी सजा पाये हुए कैदियोंको विशेष वर्ग में रखने में कोई तकनीकी और कानूनी कठिनाई हो तो उनकी कड़ी सजा [प्रशासनिक आदेशसे] सादी सजामें बदल दी जाये।
इन मुद्दोंके उल्लेखके द्वारा मेरा उद्देश्य यह खयाल पैदा करना नहीं है कि मुझे ऐसे किसी खास कैदीकी कड़ी सजाके बारेमें शिकायत है; या कि कड़ी सजा पाये हुए कुछ कैदियोंका खास खयाल करके मैं उन्हें विशेष वर्गमें ही रखवाना चाहता हूँ।
किन्तु मैं आदरपूर्वक यह जरूर कहना चाहता हूँ कि (१) मेरे उठाये हुए मुद्दों के बारेमें मुझे जानकारी दी जाये जिससे मेरा उपर्युक्त सन्देह दूर हो जाये और (२) नहीं तो न्यायकी दृष्टिसे, कड़ी सजा पानेवाले उन कैदियोंको भी विशेष वर्गमें सम्मिलित किया जाये जिन्हें अच्छे रहन-सहनकी आदत है और जिनका खयाल करके विशेष वर्ग विनियम बनाये गये हैं; या मेरा नाम और मेरे दोनों साथियोंके नाम विशेष वर्गसे निकाल दिये जायें।
हमारी हार्दिक इच्छा है कि जिन लोगोंको हम अपने ही समान सुख-सुविधाके योग्य समझते हैं, उन्हें छोड़कर केवल हमपर ही अनुग्रह न किया जाये। मुझे विश्वास है कि परमश्रेष्ठ हमारी इस इच्छाको समझेंगे। इस सम्बन्धमें मैं परमश्रेष्ठसे प्रार्थना करता हूँ कि वे इसी विषयपर लिखे मेरे गत मईकी पहली तारीखके पत्रको[१] मँगाकर पढ़ें।
मुझे यह कहने की शायद ही जरूरत है कि यह पत्र मैंने एक कैदीको हैसियत से हरगिज नहीं लिखा है, बल्कि परमश्रेष्ठने कल मेरे साथ जो कृपापूर्ण और मैत्रीपूर्ण बातचीत की थी यह उसीके सिलसिले में है।
आपका विश्वस्त,
मो॰ क॰ गांधी
अंग्रेजी मसविदे (एस॰ एन॰ ८०३४) की फोटो-नकलसे।
- ↑ देखिए "पत्र : परवदा जेलके सुपरिटेंडेंटको", १-५-१९२३।