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८९. पत्र : बम्बईके गवर्नरको[१]

यरवदा सेन्ट्रल जेल
१५ अगस्त, १९२३

परमश्रेष्ठ गवर्नर

बम्बई

महोदय,

आशा है परमश्रेष्ठ पिछले सोमवारको हमारे बीच हुई बातचीत के उल्लेखके लिए मुझे क्षमा करेंगे। विनियम बनाने और सजा घटानेकी सरकारकी सत्ताके विषय में आपने मुझसे जो कहा था, उसपर मैं जितना ही अधिक विचार करता हूँ, उतना ही अधिक मुझे महसूस होता है कि इसमें आप गलतीपर हैं। मैं स्वीकार करता हूँ कि विशेष वर्ग विनियमोंके बनाने में मुझे तो उनके आवश्यक होनेकी हार्दिक स्वीकृति के बजाय सदा यही दिखाई दिया है कि लोकमतके दबाव के आगे अनिच्छापूर्वक कुछ रियायतें दे दी गई हैं; इसलिए ये रियायतें केवल कागजी होकर रह जाती हैं। यदि आपकी यह बात सही हो कि कानून आपको कठोर कारावास प्राप्त कैदियोंको विशेष वर्ग में रखने अथवा किसी कैदीकी सजा घटाने की कोई सत्ता नहीं देता, तो मुझे सरकारकी कार्रवाईके बारेमें अपना विचार बदल देना चाहिए और उसकी नीयतके सम्बन्ध में अपनी शंकाओंको मनसे हटा देना चाहिए। और चूँकि आप कहते हैं कि वे विवादास्पद विनियम स्वयं आपने ही तैयार किये हैं, इसलिए इस मामलेमें मुझे अपना विचार बदल डालनेका अतिरिक्त कारण उपस्थित हो जाता है। मेरा आपके बारेमें हमेशा यही विचार रहा है कि आप कोई काम कभी किसी कमजोरीमें आकर अथवा अपनी इच्छाके विरुद्ध लोकमतके सामने झुकनेका दिखावा करनेके लिए कदापि नहीं करते। इसलिए यदि आप यह कहें कि आपने सख्त कैदवालोंको विशेष वर्गके विनियमोंके लाभसे केवल इसलिए वंचित रखा कि कानूनसे आपके हाथ बँधे हुए थे, तो मुझे सन्तोष हो जायेगा।

परन्तु यदि आपके कानून अधिकारी आपके विचारके प्रतिकूल यह कहें कि कानून आपके इस काम में बाधक नहीं है तो मुझे आशा है कि आप नीचे लिखी दो बातों में से एक तो करेंगे ही :

(१) या तो मुझे और मेरे उन साथियोंको, जिनके नाम मैंने आपको दिये हैं, विशेष वर्गसे अलग कर दीजिए; अथवा (२) इसी तर्कके अनुसार जो हमारे जैसे ही जीवनके आदी हैं उन सख्त कैदकी सजावाले कैदियों को भी विशेष वर्ग में रखिए।

  1. यंग इंडिया में १५ जुलाई, १९२३ है, जो स्पष्टतः भूल है।