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पत्र : यरवदा जेलके सुपरिटेंडेंटको


मैं परमश्रेष्ठसे प्रार्थना करता हूँ कि आप इस पत्रके साथ सुपरिटेंडेंटको लिखा गया मेरा १ मईका पत्र भी मँगवाकर पढ़नेकी अनुकम्पा करें।[१]

आपका विश्वस्त सेवक,
मो॰ क॰ गांधी

अंग्रेजी मसविदे (एस॰ एन॰ ८०३५) की फोटो नकल तथा यंग इंडिया, ६-३-१९२४ से

 

९०. पत्र : यरवदा जेलके सुपरिटेंडेंटको

यरवदा सेन्ट्रल जेल
६ सितम्बर, १९२३

सुपरिटेंडेंट
यरवदा सेन्ट्रल जेल
महोदय,

मुझसे मिलने की इच्छा रखनेवाले कुछ सज्जनोंके नाम सरकारके पास भेजे गये थे।[२] उनके बारेमें आपने मुझे सूचना दी है कि सरकारने मुझसे मुलाकात कर सकनेवाले व्यक्तियोंकी संख्या घटाकर दो कर देनेका निश्चय किया है, और जो नाम भेजे गये हैं उनमें से केवल श्री नारणदास और देवदास गांधीको ही इस बारकी तिमाही में मुझसे मिलने की अनुमति मिल सकती है।

सरकारने अबतक मुझे पाँच मुलाकातियोंसे मिलनेकी इजाजत दे रखी थी इसलिए इस निर्णयसे मैं अवश्य ही आश्चर्य में पड़ गया हूँ। परन्तु मैं इस दृष्टिसे इस निश्चय का स्वागत करता हूँ कि सरकारने मेरे ही खण्डमें रखे गये श्री याज्ञिकको[३] यह सुविधा देने से इनकार कर दिया था। यदि सौजन्यके विपरीत न जान पड़ता तो मैं स्वयं इन विशेष सुविधाओंको छोड़ देता; किन्तु यह मुझे बादमें मालूम पड़ा कि वे केवल मुझे ही दी जा रही हैं।

किन्तु अनुमतिको केवल सर्व श्री नारणदास और देवदास गांधीतक सीमित करनेकी बात अलग है। यदि इसका यह अर्थ है कि भविष्य में निकटके सम्बन्धियोंमें से भी मैं केवल उन्हींसे मिल सकता हूँ जिन्हें सरकार स्वीकृत करे, तो हर तीसरे महीने दो बार मुलाकात करनेके इस साधारण अधिकारको छोड़ देना मेरा कर्त्तव्य हो जाता है। मेरा खयाल था कि मैं किस तरहके लोगोंसे मिल सकता हूँ इस बातका फैसला अन्तिम रूपसे हो चुका है। इस विषयमें किये गये पत्र-व्यवहारकी दलीलोंको दुहराकर

  1. यंग इंडिया में पत्र-व्यवहार प्रकाशित करते समय गांधीजीने बादमें जो टिप्पणी दी उसके लिए देखिए "जेलके विनिथर्मोपर टिप्पणी", ६-३-१९२४ ।
  2. देखिए "पत्र : परवदा जेलके सुपरिंटेंडेंटको", २६-४-१९२३।
  3. इन्दुलाल पाक्षिक।