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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सरकारको कष्ट देने की मेरी कोई इच्छा नहीं है। मैं इतना ही कहना चाहता हूँ कि सरकारको जिन तीन मित्रोंके नाम दिये गये थे, वे उस वर्ग में आते हैं जिन्हें पत्र-व्यवहारके बाद मिलनेकी स्वीकृति दे दी गई थी। और यदि मैं इन मित्रोंसे, जिन्हें मैं अपने कुटुम्बियों के समान ही मानता हूँ, न मिल सकूं तो सभी व्यक्तियोंसे न मिलना ही मेरे लिए एकमात्र रास्ता है।

आपने जो निर्णय मेरे पास भेजा है, मैं देखता हूँ कि सरकारको उसपर पहुँचने में एक पखवाड़ेसे भी अधिक लग गया। क्या मैं इस पत्रके सम्बन्धमें शीघ्र ही कोई उत्तर पानेकी आशा कर सकता हूँ, ताकि न तो वे लोग जो मुझसे मिलनेके लिए उत्सुक हैं, अनावश्यक रूपसे असमंजस में पड़े रहें और न स्वयं मैं ही।

आपका विश्वस्त,
मो॰ क॰ गांधी
सं॰ ८२७

अंग्रेजी मसविदे (एस॰ एन॰ ८०३६) की फोटो नकल तथा यंग इंडिया, ६-३-१९२४ से।

 

९१. सन्देश : मुहम्मद अलीको[१]

[यरवदा जेल,
१० सितम्बर, १९२३]

जेलमें होने के कारण मैं आपको कोई सन्देश नहीं भेज सकता। लोगोंका जेलसे सन्देश भेजना मैंने हमेशा नापसन्द किया है। किन्तु अपने प्रति आपके प्रेमको देखकर मैं गद्गद हो गया हूँ। किन्तु मेरा आपसे यह कहना है कि मेरे प्रति आपका जो प्रेम है उसे देश के प्रति अपनी निष्ठासे कम महत्त्व दें। मेरे विचार तो सर्वविदित हैं। मैं जेल में आने से पहले उन्हें व्यक्त कर चुका हूँ, और तबसे उनमें कोई परिवर्तन नहीं हुआ है। मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि यदि आपका मुझसे मतभेद हो जाये तो भी आपके और मेरे सम्बन्धोंकी मिठास रत्ती भर कम नहीं होगी।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ४–१०–१९२३
  1. ऐसा लगता है कि गांधीजीने व्यक्तिगत रूपसे यह सन्देश देवदास गांधीको उस समय दिया था जब वे यरवदा जेलमें गांधीजी से मिलने आये थे। देवदासने उसे महादेव देसाईको दिया और महादेव देसाईने बादमें इसे ४-१०-१९२३ के यंग इंडिया में ' दिल्ली कांग्रेस' लेखमें उद्धृत किया। महादेव देसाईंका कहना है कि १३ सितम्बरको मुहम्मद अलीने देवदाससे पूछा, "क्या बापूने मेरे लिए कुछ कहा है?" इसपर देवदासने मुहम्मद अलीको यह सन्देश दिया जिसका उल्लेख उन्होंने विनोद करते हुए अपने भाषण में 'बेतारके तारका' सन्देश कहकर किया। किन्तु मुहम्मद अलीने बम्बई कांग्रेस १२ सितम्बरको अध्यक्षके रूपमें परिषद्-प्रवेश सम्बन्धी प्रस्तावका समर्थन करते हुए इस सन्देशको भिन्न रूपमें उद्धृत किया। उन्होंने उसका अर्थ यह निकाला कि उसके अनुसार कांग्रेसके असहयोग सम्बन्धी कार्यक्रम में फेरफार किया जा सकता है। १७-९-१९२३ के हिन्दूमें यह सन्देश साररूपमें इस प्रकार छपा था : "मैं नहीं चाहता कि आप मेरे कार्यक्रमपर कायम रहें। मैं समूचे कार्यक्रमके पक्षमें हूँ। किन्तु यदि देशको अवस्थाको देखते हुए आप बहिष्कार सम्बन्धी कार्यक्रमकी एक या दो बातोंको देशके प्रति अपने प्रेमके नामपर रद्द करना, या बदलना था उनमें कुछ जोड़ना उचित समझें तो मैं आपको आदेश देता हूँ कि आप मेरे कार्यक्रमके उन भागोंको छोड़ दें अथवा उनमें वैसा फेरफार कर लें।" किन्तु गांधीजीने ऐसा कोई सन्देश भेजा था, इसका कोई प्रमाण नहीं है। इसके विपरीत महादेव देसाईने '’'यंग इंडियाके 'दिल्ली कांग्रेस' लेखमें, चक्रवर्ती राजगोपालाचारीने २०-९-१९२३ के यंग इंडियाको अपनी टिप्पणियों में, पण्डित सुन्दरलालने अपने १-११-१९२३ के यंग इंडिया में लिखे गये 'हमारा तात्कालिक कर्त्तव्य' लेखमें, और अन्त में श्री वी॰ एस॰ श्रीनिवास शास्त्रीने समाचारपत्रोंको दिये गये अपने वक्तव्यमें, जो १७-१-१९२४ के यंग इंडिया में उद्धृत किया गया है, इसका खण्डन किया था