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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

चाहता हूँ कि मुझे जो विशेष सुविधाएँ मिली हैं, मैं उन्हें छोड़ दूँ। आपने इस ओर संकेत करनेकी मेहरबानी की है कि शायद आपके पूर्ववर्ती सुपरिटेंडेंटने मेरे आहारके वर्तमान अनुपातको स्वास्थ्य के लिए आवश्यक समझा हो। किन्तु मैं जानता हूँ कि वस्तुतः यह बात नहीं है; क्योंकि मेरा आहार तो जबसे मैं जेलमें आया हूँ तबसे लगभग यही रहा है। अधिक सही बात तो यह है कि अबतक मेरे साथियोंको और मुझे, जैसा कि मैं पहले कह चुका हूँ, मूल्यका विचार किये बिना अपने भोजनको इच्छानुसार व्यवस्थित कर लेनेकी अनुमति थी।

इसलिए मैं अगले बुधवारसे सन्तरे और किशमिश लेना बन्द करना चाहता हूँ। उसके बाद भी मेरी खुराक अधिकृत मूल्यसे अधिककी ही बैठेगी। मुझे नहीं मालूम कि दो सेर बकरी के दूधकी भी मुझे जरूरत है या नहीं; परन्तु जबतक आप खुराकको अधिकृत मूल्यतक घटा ले जानेमें मेरी सहायता नहीं करते, तबतक मैं चार पौंड दूध अनिच्छापूर्वक लेता रहूँगा और नीबू भी, मगर दोसे अधिक नहीं।

आपको यह विश्वास दिलानेकी जरूरत नहीं है कि अपनी खुराकमें कमी करनेका यह विचार किसी खिन्नता के कारण नहीं है। श्री अब्दुल गनीके बारेमें आपके निर्णयके साथ मेरी पूरी सहमति है। खुराकमें यह परिवर्तन में केवल अपने चित्तकी शान्ति के लिए करना चाहता हूँ; और इसमें आपकी सहानुभूति और सहमतिका इच्छुक हूँ।

आपका आज्ञाकारी,
मो॰ क॰ गांधी
सं॰ ८२७

अंग्रेजी मसविदे (एस॰ एन॰ ८०३८) की फोटो नकल तथा यंग इंडिया, ६-३-१९२४ से।

 

९३. पत्र : इन्दुलाल याज्ञिकको

१२ नवम्बर, १९२३

भाईश्री इन्दुलाल

इसे[१] ध्यानपूर्वक पढ़ जायें और अब्दुल गनीको भी पढ़ा दें। भाषा आदिके सम्बन्धमें कुछ सुझाव देना चाहें तो दें। मुझे नारंगी और किशमिश छोड़नेके अतिरिक्त अन्य कोई चारा ही दिखाई नहीं देता। मुझे ऐसा बिलकुल नहीं लगता कि इनको लेनेकी जरूरत है। मान लें कि कुछ सेर वजन कम ही हो गया, लेकिन आत्मसन्तोषके आगे उसकी कुछ भी कीमत नहीं। मैं देखता हूँ कि मैं अपने स्वभावके अनुसार इससे भिन्न कुछ कर ही नहीं सकता। मैंने ज॰ की बहुत प्रतीक्षा की है ।

मोहनदास

हस्तलिखित गुजराती मसविदे (एस॰ एएन॰८०३८) से।

  1. यह सम्भवतः पिछले शीर्षकका मसविदा था।