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जेल डायरी, १९२३

१७ अप्रैल, मंगलवार

जेम्स की 'अवर हेलेनिक हेरिटेज' समाप्त की। कल देवदास मिलने आया था। शंकरलाल आज रिहा कर दिये गये।

१९ अप्रैल, गुरुवार

जब शाहजहाँके क्रोधसे बचने के लिए सूफी मुल्ला शाहको भाग जानेकी सलाह दी गई तो उन्होंने कहा :

मैं कोई पाखण्डी नहीं हूँ जो भागकर अपनी जान बचाऊँ। मैं एक सत्यवक्ता हूँ। मृत्यु और जीवन मेरे लिए समान हैं। मैं तो चाहूँगा कि अगले जन्ममें भी मैं अपने खूनसे सूलीको रँगें। में अमर और अनश्वर हूँ; मृत्यु मुझसे भय खाती है, क्योंकि मेरे ज्ञानने मृत्युको जीत लिया है। में उस धामका निवासी हूँ जहाँ सब रँग मिटकर एक हो जाते हैं।

मन्सूरी हलाजने कहा है :

बँधे हुए व्यक्तिके हाथ काट देना आसान है परन्तु मुझ भगवान् से जोड़नेवाले बन्धनको काटना बड़ा ही कठिन काम है।

—क्लॉड फील्ड रचित 'मिस्टिक ऐंड सेन्ट्स ऑफ इस्लाम'।

आज पाँच [कच्चा] सेर किशमिश प्राप्त हुई।

२६ अप्रैल, गुरुवार

'उपनिषद् प्रकाश', भाग ७-१० (कठोपनिषद्) समाप्त किया। 'प्रश्नोपनिषद्' से प्रारम्भ होनेवाले ११वें भागको आज पढ़ना शुरू किया। शनिवारको उर्दू रीडर—१ का दूसरा वाचन समाप्त किया। शनिवारको पेटमें जोरका दर्द हुआ। सोमवारको शान्त हुआ। मेजरने मेरी भली-भाँति देखभाल की। बहुत तकलीफ हुई। कष्टके बावजूद शनिवारको कार्य और अध्ययन नियमित रूपसे चलता रहा। रविवारसे मंगलवारतक सब काम बन्द रहे। दर्दके कारण मौन नहीं रखा। मैं समझता हूँ दर्दका कारण यह था कि शनिवारको सवेरे मैंने अण्डीका जो तेल लिया, उसका असर होनेसे पहले ही सदाकी तरह ७ बजे दूध-रोटी खा ली। ऐसा मैंने पहले भी किया है। परन्तु तब उससे कुछ नहीं हुआ था, पर इस बार दर्द हो गया। इससे में दो परिणाम निकालता हूँ। एक तो यह कि दर्द धीरे-धीरे जड़ पकड़ रहा है तथा दूसरा यह कि जुलाबका असर होनेसे पहले कुछ भी खानेका प्रयोग मेरे लिए ठीक नहीं है। ये परिणाम सुखद और दुःखद दोनों ही हैं। ईश्वर सब प्रकारसे मेरी परीक्षा ले रहा है अपनी पुस्तकमें उसने क्या लिख रखा है वह मुझे नहीं देखने देता। उसकी बुद्धिमानीका पार नहीं।

'२८ अप्रैल, शनिवार’

कल दादा चानजीका 'अवेस्ता' पूरा किया। तथा स्पेन्सरकी 'एलीमेन्ट्स ऑफ सोशियोलॉजी' पढ़ना शुरू किया। आज मैकॉलिफका 'सिख धर्मका इतिहास' पढ़ना शुरू किया।

२३-१३