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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

शायद वह मुझे छोड़ ही दे। किन्तु हमारा आन्दोलन झूठे मुद्दोंको लेकर नहीं किया जाना चाहिए। जो भी आन्दोलन हो, ठीक अहिंसात्मक ढंगका हो। शायद मैं अपनी बात बहुत अच्छी तरह नहीं कह पाया हूँ, किन्तु यदि आप इसे अपने अनोखे ढंगसे लिख लेंगे तो ठीक रहेगा।

इसके बाद मैंने उनसे कार्यकर्त्ताओं, अनुयायियों अथवा देशके लिए कोई सन्देश देनेका फिर अनुरोध किया। इस सम्बन्धमें उनकी दृढ़ता आश्चर्यजनक थी। उन्होंने कहा, मैं सरकारका कैदी हूँ और मुझे कैदियोंके सदाचार सम्बन्धी नियमका पूरी सच्चाई से पालन करना चाहिए। मैं तो नागरिककी हैसियतसे मृतवत् हूँ। मुझे बाहरकी घटनाओंका कोई ज्ञान नहीं है और में जनतासे किसी तरहका सम्पर्क रखनेका अधिकारी नहीं हूँ। मुझे कोई सन्देश नहीं देना है।

"तब कुछ दिन पहले श्री मुहम्मद अलीने आपका सन्देश कैसे दिया था?" ये शब्द मेरे मुँह से निकलते ही मुझे खेद हुआ; किन्तु अब क्या हो सकता था।

स्पष्ट ही उन्हें मेरे प्रश्नसे आश्चर्य हुआ और वे बोल उठे :

श्री मुहम्मद अलीने मेरा सन्देश दिया?[१]
[अंग्रेजीसे]
हिन्दू, १४-१-१९२४
 

९६. पत्र : कर्नल मैडॉकको[२]

सैसून अस्पताल
पूना
पौने दस बजे रात, १२ जनवरी, १९२४१[३]

प्रिय कर्नल मैडॉक,

मुझे मालूम है कि पिछले छः महीनोंमें मेरी बीमारी किस-किस दौरसे गुजरी है सो आप जानते हैं। आपकी मुझपर असाधारण कृपा रही है। आप, प्रधान सर्जन और चिकित्सासे सम्बन्धित अन्य सज्जनोंका यह मत है कि मेरे लिए जिस आपरेशनको आपने जरूरी बताया है उसमें विलम्ब करना बहुत खतरनाक है। आपने मुझे कृपा-पूर्वक यह भी बताया है कि सरकारने मेरे विशेष चिकित्सक मित्रोंको बुलानेकी

  1. देखिए "सन्देश : मुहम्मद अलीको", १०-९-१९२३। इसी समय नर्सके आ जानेसे भेंट समाप्त हो गई और गांधीजीको आपरेशनके कमरेमें ले जाया गया।
  2. यह पत्र श्री वी॰ एस॰ श्रीनिवास शास्त्रीको बोलकर लिखाया गया था और उन्होंने इसे पेंसिलसे लिखा था। यह २०-१-१९२४ के हिन्दू और २५-१-१९२४ के सर्चलाइटमें भी छपा था।
  3. साधन-सूत्र में तारीख १९ जनवरी दी गई है जो स्पष्ट भूल है। गांधीजीका अपेन्डिक्सका आपरेशन १२ जनवरीको किया गया था।