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९९. भेंट : दिलीपकुमार रायसे[१]

२ फरवरी, १९२४

. . .हमारी बातचीत संगीतको लेकर होती रही। महात्माजीने प्रसंगवश मुझसे कहा, यद्यपि मैं संगीतके विशेषज्ञ अथवा पारखीके रूपमें संगीतको समझनेका गर्व नहीं कर सकता फिर भी मैं सचमुच संगीतका प्रेमी हूँ। उन्होंने कहा :

मुझे संगीतसे इतना प्रेम है कि एक बार जब मैं दक्षिण आफ्रिकाके एक अस्पतालमें था और ऊपरके ओंठमें लगी चोटसे पीड़ित था तब मेरे एक मित्रकी पुत्रीने मेरे कहने पर 'लीड काइंडली लाइट' गीत गाकर सुनाया और मुझे उसे सुनकर बड़ी सान्त्वना मिली थी।

मैंने उनसे पूछा, मीराबाईके गीत बहुत सुन्दर हैं। क्या आपने उनका कोई गीत सुना है? उन्होंने कहा :

हाँ, मैंने मीराके कई गीत सुने हैं। वे गीत बहुत सुन्दर हैं। इसका कारण यह है कि वे मीराके हृदयसे निकले हैं और गीत रचनेकी इच्छासे या लोगोंको खुश करनेकी इच्छासे नहीं लिखे गये हैं। में उनकी इच्छानुसार उसी दिन शामको उनके पास गया। गानेके बाद मैंने देखा कि उनपर संगीतका प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ा है। मेरा खयाल है कि अस्पतालके सामान्य प्रकाश में भी उनकी आँखें चमक उठी थीं।

मैंने थोड़ा रुककर कहा, "मैं यह अनुभव करता हूँ कि हमारे स्कूलों और कालेजों में हमारे सुन्दर संगीतकी बहुत उपेक्षा की गई है।" महात्माजीने उत्तर दिया :

हाँ, उपेक्षा की गई है; मैं तो यह हमेशा से कहता आया हूँ।

श्रीयुत महादेव देसाई हमारी बातचीतके समय बराबर वहाँ मौजूद थे। उन्होंने इस बातका समर्थन किया। "मुझे आपकी यह बात सुनकर बहुत प्रसन्नता हुई है। क्योंकि अबतक मेरा यह खयाल रहा है कि आप संगीत-जैसी समस्त कलाओंके विरोधी हैं।"

मैं और संगीत के विरुद्ध! मेरे बारेमें इतनी भ्रान्तियाँ फैली हुई हैं कि अब उन्हें फैलानेवालों से पार पाना मेरे लिए प्रायः असम्भव हो गया है। फलतः जब मैं अपने मित्रोंके सम्मुख स्वयं कलाकार होनेका कोई दावा करता हूँ तो वे मेरी बातपर मुस्कुरा उठते हैं।

  1. बँगलाके प्रसिद्ध नाटककार द्विजेन्द्रलाल रायके पुत्र और श्रीअरविन्द आश्रम, पाण्डिचेरीके सदस्य। गांधीजी से उनकी यह भेंट सैसून अस्पतालमें हुई थी। इस भेंटका जो अंश यहाँ दिया गया है उसका विवरण ७-२-१९२४ के हिन्दूमें भी प्रकाशित हुआ था। वही विवरण बादको रायकी अमंग दो ग्रेट नामक पुस्तकमें प्रकाशित हुआ था।