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भेंट : दिलीपकुमार रायसे


"मुझे इस बातको सुनकर बहुत प्रसन्नता हुई, क्योंकि मुझे यह बताया गया है कि आपके जीवन-दर्शन में, जो पूर्ण वैराग्यका दर्शन है, संगीत-जैसी कलाओंको मुश्किलसे ही कोई स्थान मिल सकता है।" महात्माजीने जोर देकर कहा :

मेरा कहना यह है कि वैराग्य जीवनकी सबसे बड़ी कला है।

किन्तु इस समय कलासे मेरा मतलब कुछ भिन्न प्रकारकी क्रियासे है जैसे संगीत अथवा चित्रकारी अथवा मूर्तिकला। मेरा खयाल यह था कि आप उसके समर्थक होनेके बजाय कुछ विरोधी ही होंगे।" महात्माजीने कहा :

मैं संगीत जैसी कलाओंका विरोधी कदापि नहीं हूँ। मैं तो संगीतके बिना भारतके धार्मिक जीवनके विकासकी कल्पना भी नहीं कर सकता। मैं तो कहता हूँ कि मैं संगीतका और दूसरी कलाओंका प्रेमी हूँ। अन्तर केवल इतना ही है कि कलाओंका जो महत्त्व माना जाता है उससे, कलाओंको जो महत्त्व में देता हूँ, वह कुछ भिन्न है। आजकल जिसे कलाके नामसे पुकारा जाता है निःसन्देह मैं उसका विरोधी हूँ। उदाहरणके लिए यह माना जाता है कि कलाको समझने के लिए उसके शास्त्रका अच्छा ज्ञान होना चाहिए; किन्तु मैं तो उस कलाको कला नहीं कहता। यदि आप सत्याग्रह आश्रममें जायें तो आप देखेंगे कि वहाँकी दीवारें चित्रोंसे रहित हैं। मेरे मित्रोंको इसपर आपत्ति है। मैं मानता हूँ कि मेरे आश्रमकी दीवारोंपर चित्र आदि नहीं हैं। किन्तु इसका कारण यह है कि मैं दीवारोंको आड़-बचावकी चीज मानता हूँ, यह नहीं कि मैं कलामात्रका ही विरोधी हूँ। क्या मैंने अनेक बार तारिकाओंसे भरे आकाशके दिव्य मण्डपको एकटक घंटों नहीं निहारा है? मैं तो ऐसे किसी चित्रकी कल्पना ही नहीं कर सकता जो मनको तृप्ति देनेमें तारों-जड़े आकाशसे बढ़कर हो। उसके सौन्दर्यको देखकर मैं अचरजमें पड़ जाता हूँ, आत्म-विभोर हो उठता हूँ और रोमांचकारी आनन्दके सागरमें निमग्न हो जाता हूँ। कहाँ ईश्वरकी यह आश्चर्यजनक रहस्यमयी रचना और कहाँ आदमीकी बनाई तसवीर!

मैंने कहा : "में आपके इस कथन से सहमत हूँ कि प्रकृति महान् कलाकार है। आज कलाके नामपर सर्वत्र जो विकृति दिखाई पड़ रही है और जिसे दुर्भाग्यवश लोग प्रायः कला ही मान बैठते हैं उसके सम्बन्धमें आपके तिरस्कारपूर्ण शब्दोंसे में सहमत हूँ। और उन कलाकारोंसे भी मेरा मतभेद है जो कलाको जीवनसे भी बड़ी माना करते हैं।"

यह बिलकुल ठीक है। सब कलाएँ एक तरफ, जीवन एक तरफ यही है और यही सदा रहेगा। मैं तो इससे भी आगे जाता हूँ। मैं कहता हूँ कि जो सर्वोत्तम जीवन जीता वही सबसे बड़ा कलाकार है। क्योंकि जिस कलाके पीछे उदात्त जीवन न हो वह कला कैसी? कला मूल्यवान तभी है जब वह जीवनको ऊपर उठाये। मुझे तीव्र आपत्ति तभी होती है जब लोग यह कहने लगते हैं कि कला ही सब कुछ है और कलाकी वेदीपर जीवनकी बलि दे दी जाये तो भी कोई बात नहीं। ऐसेमें मैं यही सोच लेता हूँ कि मेरे कला-मूल्य लोगोंके कला-मूल्यसे भिन्न हैं। किन्तु मेरी इसी बातपर लोग मुझे समस्त कलाओंका विरोधी मानने लगते हैं।

[अंग्रेजी से]
बॉम्बे क्रॉनिकल, ५-२-१९