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१०५. पत्र : मुहम्मद अलीको[१]

सैसून अस्पताल
पूना
७ फरवरी, १९२४

प्यारे दोस्त और भाई,

आपके कांग्रेस अध्यक्ष होने के नाते मैं आपको कुछ शब्द लिख रहा हूँ। मैं जानता हूँ कि मेरी इस अचानक रिहाईके सम्बन्धमें मेरे देशभाई मुझसे कुछ सुननेकी आशा रखते हैं। मुझे खेद है कि सरकारने मुझे बीमारीके कारण अवधिसे पहले छोड़ दिया है। ऐसी रिहाई मेरी प्रसन्नताका कारण नहीं बन सकती क्योंकि मैं मानता हूँ कि कोई कैदी बीमारीके आधारपर रिहा नहीं किया जा सकता।

बीमारी के दिनों में जेल और अस्पतालके अधिकारियोंने मेरी पूरी देखभाल की है, यदि यह बात मैं आपसे और आपके द्वारा सर्वसाधारणसे न कहूँ तो यह अकृतज्ञता होगी। यरवदा जेलके सुपरिंटेंडेंट कर्नल मरेको ज्यों ही मेरी बीमारीके जरा भी गम्भीर होने का शक हुआ, त्यों ही उन्होंने कर्नल मैडॉकको अपनी मददके लिए बुलाया और इसमें सन्देह नहीं कि मेरे लिए जल्दी से जल्दी अच्छेसे अच्छे इलाजकी व्यवस्था की गई। मुझे डेविड अस्पताल और सैसून अस्पतालमें जल्दीसे-जल्दी पहुँचाया गया। कर्नल मैडॉक तथा उनके अमलेने बड़ी चिन्ता और ममताके साथ मेरी शुश्रूषा की है। मैं उन नर्सों का उल्लेख करना भी कैसे भूल सकता हूँ जिन्होंने मेरी स्नेहपूर्ण परिचर्या की है। यद्यपि अब अस्पतालमें रहना न रहना मेरी मर्जीकी बात है पर मैं जानता हूँ कि इससे अच्छा इलाज दूसरी जगह नहीं हो सकता। मैंने कर्नल मैडॉककी कृपापूर्ण अनुमति से यह तय किया है कि जबतक घाव बिलकुल अच्छा न हो जाये और फिर किसी इलाजकी जरूरत न रहे, तबतक उन्हींकी देखरेखमें रहूँ।

इससे जनता आसानीसे यह समझ सकती है कि अभी कुछ समयतक मैं सक्रिय कार्यके सर्वथा अयोग्य रहूँगा। जो लोग यह चाहते हैं कि मैं शीघ्र ही सार्वजनिक कार्यक्षेत्रमें उत्तर पडूँ, यदि वे मुझसे मिलने आनेकी अपनी स्वाभाविक इच्छाको रोके रहें तो यह जल्दी सम्भव हो सकेगा। मैं अभी इस योग्य नहीं हूँ कि बहुतसे लोगोंसे मिल-जुल सकूँ और शायद कुछ सप्ताहोंतक यही हाल रहेगा। मित्रगण, आज अपना जितना समय राष्ट्रीय कार्यों और खासकर चरखा कातनेमें लगा रहे हैं, यदि वे उससे अधिक समय लगाने लगें तो में उनके प्रेमको अधिक मूल्यवान मानूँगा।

अपनी इस रिहाईसे मुझे कोई राहत नहीं मिली। तब तो मैं जिम्मेदारियोंसे मुक्त था; उन दिनों मेरा सिर्फ इतना ही काम था कि मैं अपनेको जेल-जीवन के अनुशासन में रखूँ और अधिक कार्यक्षम बनूँ। पर ऐसी जिम्मेदारियोंके खयाल मुझे घेरे

  1. यह पत्र ८-२-१९२४ के बॉम्बे क्रॉनिकल और हिन्दूमें भी प्रकाशित किया गया था।