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पत्र : मुहम्मद अलीको

हुए हैं जिन्हें उठानेमें मैं इस समय असमर्थ हूँ। मेरे पास बधाईके तौरपर तार आ रहे हैं। मेरे प्रति मेरे देश भाइयोंके प्रेमके जो बहुतसे सबूत मिलते रहे हैं इनसे उनकी संख्या में इजाफा हो गया है। इससे मुझे स्वभावतः खुशी और तसल्ली तो होती है, पर कितने ही तार ऐसे भी आये हैं जिनसे यह जाहिर होता है कि देश मेरी सेवाओंसे बड़े-बड़े परिणामोंकी आशा लगाये बैठा है और यह बात मुझे विकल बनाये हुए हैं। यह खयाल कि मैं अपने सामने पड़े हुए कामोंको निभानेमें बिलकुल असमर्थ हूँ, मेरे गर्वको चूर-चूर कर देता है।

यद्यपि मैं देशकी मौजूदा हालतके बारेमें बहुत कम जानता हूँ, फिर भी मेरे पास यह समझ सकनेके लिए पर्याप्त जानकारी है कि देशकी समस्याएँ बारडोलीके प्रस्तावोंके समय जितनी जटिल थीं, आज उससे भी अधिक जटिल हो गई हैं। यह बिलकुल स्पष्ट है कि हिन्दू, मुसलमान, सिख, पारसी, ईसाई तथा दूसरी जातियोंकी एकताके बिना स्वराज्यकी बात करना ही व्यर्थ है। जिस एकताको में १९२२ में गलती-से देशमें लगभग पूर्णतः स्थापित समझता था, देखता हूँ कि जहाँतक हिन्दू-मुसलमानोंका ताल्लुक है, उसमें बड़ा व्यवधान उपस्थित हो गया है। परस्पर विश्वासकी जगह अविश्वासने ले ली है। यदि हमें आजादी हासिल करनी है तो विभिन्न जातियोंको मित्रताके अटूट बन्धनमें बाँधना ही होगा। मेरी रिहाईपर राष्ट्र जिस सद्भावनाका प्रदर्शन कर रहा है, क्या वह विभिन्न जातियोंकी पक्की एकताके रूपमें परिणत हो सकेगी? किसी भी उपचार, या विश्रामकी अपेक्षा मैं इस तरह कहीं जल्दी स्वास्थ्य लाभ कर सकूँगा। जब जेलमें मैंने सुना कि कुछ स्थानोंमें हिन्दुओं और मुसलमानोंके बीच तनातनीकी हालत है तब मेरे मनमें उदासी छा गई। मुझे डाक्टरोंने आराम करनेकी सलाह दी है। किन्तु जबतक आपसी फूटका घुन मेरे मनको खा रहा है तबतक डाक्टरोंके बताये हुए विश्रामसे मुझे आराम नहीं मिलनेका। जो लोग मेरे प्रति प्रेम-भाव रखते हैं उन सबसे मेरा अनुरोध है कि वे इस प्रेमका उपयोग उस एकताको बढ़ाने में करें जो हम सबको प्रिय है। में जानता हूँ कि यह काम कठिन है किन्तु हमारे अन्दर ईश्वरके प्रति जीवन्त श्रद्धा हो तो कोई भी काम कठिन नहीं। आइए, हम अपनी कमजोरियोंको समझें और ईश्वरकी शरणमें जायें, वह अवश्य मदद करेगा। कमजोरीसे डर और डरसे अविश्वास पैदा होता है। आइए, हम दोनों डरको अपने दिलसे निकाल दें। मैं जानता हूँ कि यदि हममें से एक भी अपने डरको दूर कर दे तो हमारे लड़ाई-झगड़े बन्द हो जायें। मैं तो यहाँतक कहता हूँ कि आपके कार्य-कालका महत्त्व केवल इस बातसे आँका जायेगा कि आप एकताके लिए क्या कर सके हैं। मैं जानता हूँ कि हम एक-दूसरेसे भाईकी तरह प्रेम करते हैं। इसलिए मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ कि मेरी चिन्ताओंमें हाथ बँटाइए और मेरी मदद कीजिए, जिससे मैं अपनी बीमारीके दिन हलके मनसे बिता सकूँ।

यदि हम सिर्फ देशकी बढ़ती हुई दरिद्रताका चित्र अपनी आँखोंके सामने ला सकें और यह समझें कि चरखा ही इस रोगकी एकमात्र दवा है तो वही एक काम हमें लड़नेके लिए फुरसत नहीं मिलने देगा। मुझे पिछले दो वर्षोंके दौरान गहराईके साथ सोचनेके लिए काफी समय और एकान्त मिला है। उसने मेरे विश्वासको