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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

बारडोली कार्यक्रमकी क्षमतामें और इसलिए भिन्न-भिन्न जातियोंकी एकता, चरखे, अस्पृश्यता निवारण और स्वराज्यके लिए कायिक, वाचिक, मानसिक अहिंसाकी अनिवार्यतामें और भी अधिक दृढ़ बना दिया है। यदि हम ईमानदारीके साथ इस कार्यक्रमको पूरा-पूरा चलायें तो हमें सविनय अवज्ञाका सहारा लेनेकी जरा भी आवश्यकता नहीं है और मेरा खयाल है कि उसकी कभी आवश्यकता भी नहीं होगी। तथापि मैं यह जरूर कहूँगा कि एकान्तमें प्रार्थनापूर्वक चिन्तन और मनन करनेपर भी सविनय अवज्ञाकी क्षमता तथा उसके औचित्यपर मेरा विश्वास जरा भी कम नहीं हुआ है। मैं इस बातको पहलेसे भी अधिक दृढ़ताके साथ मानता हूँ कि जब किसी व्यक्ति या राष्ट्रकी आत्मापर ही आघात हो रहा हो तब सविनय अवज्ञा करना उसका अधिकार और कर्त्तव्य है। मुझे इस बातका विश्वास हो चुका है कि युद्धकी अपेक्षा सविनय अवज्ञामें कम खतरा है। युद्धके अन्तमें जहाँ विजेता और विजित—दोनोंको हानि पहुँचती है वहीं सविनय अवज्ञा दोनोंका मंगल करती है।

आप मुझसे इस बातकी उम्मीद नहीं रखेंगे कि मैं यहाँ कांग्रेसियोंके विधान परिषदों तथा सभाओंमें प्रवेशके जटिल प्रश्नपर अपनी राय जाहिर करूँ। यद्यपि मैंने परिषदों, अदालतों और सरकारी शिक्षालयोंके बहिष्कारके सम्बन्धमें अपनी राय किसी भी रूप में नहीं बदली है, तथापि दिल्लीमें जो परिवर्तन किये गये उनके सम्बन्धमें राय कायम करने योग्य सामग्री अभी मेरे पास नहीं है और इसपर तबतक अपनी राय जाहिर करनेका मेरा इरादा नहीं है जबतक कि मुझे उन प्रसिद्ध देश-भाइयोंसे इस प्रश्नपर विचार करनेका अवसर नहीं मिलता, जिन्होंने देशहितके खयालसे विधान सभाओंके बहिष्कारको हटा लेना जरूरी माना है।

अन्तमें, मैं आपकी मार्फत बधाई भेजनेवाले तमाम सज्जनोंको धन्यवाद देता हूँ। हर शख्सको अलहदा उत्तर देना मेरे लिए असम्भव है। कितने ही पत्र नरम दलके अपने मित्रोंकी ओरसे भी मुझे मिले हैं, यह देखकर मुझे बड़ी खुशी हुई। मेरा उनसे कोई झगड़ा नहीं है और न असहयोगियोंका ही हो सकता है। नरम दलवाले भी देशके हितैषी हैं और प्रामाणिक रूपसे अपनी मान्यताओंके अनुसार देशकी सेवा करते हैं। यदि हम समझते हों कि वे गलतीपर हैं तो हम मित्र-भाव और धीरजके साथ उनसे दलील करके ही उन्हें अपने पक्षमें लानेकी आशा कर सकते हैं, उन्हें गालियाँ देकर हरगिज नहीं। वस्तुतः हम अंग्रेजोंको भी अपना मित्र समझना चाहते हैं, उन्हें अपना शत्रु समझकर उनके सम्बन्धमें कोई गलत खयाल नहीं बनाना चाहते। यदि आज ब्रिटिश सरकार के साथ हमारी लड़ाई चल रही है तो वह उनके खिलाफ नहीं बल्कि उनकी शासन प्रणाली के खिलाफ है। मुझे मालूम है कि हममें से बहुतोंने इस बातको नहीं समझा है और हमेशा इस भेदको ध्यान में नहीं रखा है; और जिस हदतक हमने इसमें गफलत की है उस हदतक खुद अपना ही नुकसान किया है।

आपका सच्चा मित्र और भाई,
मो॰ क॰ गांधी

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १४-२-१९२४