पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 23.pdf/२५५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

 

१०६. पत्र : प्राणजीवन मेहताको

सैसून अस्पताल
पूना
माघ सुदी २ [७ फरवरी, १९२४][१]

भाईश्री प्राणजीवन,

मेरा मन तो हमेशा आपकी ही यादमें लीन रहा। जेलमें शायद ही कोई दिन ऐसा गया होगा कि जब आपकी याद न आई हो। सरकारसे पत्रोंके सम्बन्धमें विवाद हो जानेके कारण मैंने पत्र लिखना बन्द ही कर दिया था। इसलिए आपको अपवाद मानकर कैसे पत्र लिखता? मुझे रिहा हुए आज तीसरा दिन है। आज हाथमें कुछ शक्ति आई है, इसलिए यह पहला पत्र आपको ही लिख रहा हूँ।

इस समय तो हम दोनों ही बीमार हैं, इसलिए कौन किसका समाचार पूछे? मेरी तबीयत सुधरती जा रही है। अभी घाव हैं। इस समय डाक्टर ऐसा मानते हैं कि इस घावको भरनेमें लगभग आठ दिन लगेंगे। मुझे ऐसा लगता है कि यह महीना तो यहीं निकलेगा; उसके बाद मैं क्या करूँगा यह बात तभी सोचूँगा।

रेवाशंकरभाई और आपसे मिलकर आनेवाले दूसरे लोगोंने बताया है कि आपका स्वास्थ्य पहलेसे अच्छा है। यदि आप हाथसे पत्र लिखते हों तो हाथसे लिख दें, अन्यथा किसी दूसरेसे लिखा दें। मैं स्वस्थ होनेपर आपको देखना तो चाहता ही हूँ। क्या आपकी स्थिति ऐसी है कि आप मुझसे मिलनेके लिए आ सकें?

मोहनदासके वन्देमातरम्

मूल गुजराती पत्र ( जी॰ एन॰ १३१) की फोटो-नकलसे।
 

१०७. पत्र : लाला लाजपतरायको

सैसून अस्पताल,
८ फरवरी, [१९२४][२]

प्रिय लालाजी

मैंने आपको पत्र लिखनेका वचन दिया था; पर अबतक मैं उसका पालन न कर सका। मेरा हाथ अभी कमजोर है। मैं पत्र लिखवाना चाहता था; पर जब मैं लिखवाने को तैयार हुआ तब सहायक लोग नजदीक नहीं थे।

  1. यह पत्र ५ फरवरीको गांधीजीकी रिहाईके बाद तीसरे दिन लिखा गया था।
  2. इस पत्रका एक भाग, जो सम्भवतः अंग्रेजीमें लिखा गया था, १२-२-१९२४ के हिन्दूमें प्रकाशित हुआ था।