१०९. पत्र : मुहम्मद याकूबको
[१२ फरवरी, १९२४][१]
महात्मा गांधीने श्री मुहम्मद याकूबको एक पत्र लिखा है। उन्होंने इस पत्रमें उनसे प्रार्थना की है, आप असेम्बलीमें[२] मुझे नोबेल शान्ति पुरस्कार देनेकी सिफारिश-का प्रस्ताव प्रस्तुत न करें, क्योंकि मेरे विश्व शान्तिके निमित्त किये गये प्रयत्न मेरे लेखे पुरस्कार ही हैं। यदि यूरोप मेरे अहिंसाके सिद्धान्तको कोई मान्यता देता है तो मैं उसका स्वागत करूँगा। किन्तु यदि यह पुरस्कार अपने-आप नहीं दिया जाता बल्कि बाहरी सिफारिशसे दिया जाता है तो उससे ऐसी मान्यताका मूल्य नहीं रह जायेगा। इसके अतिरिक्त मेरा नाम मेरे देशके किसी दूसरे मनुष्यके मुकाबलेमें प्रस्तुत करनेका विचार मुझे जरा भी पसन्द नहीं।[३]
- [अंग्रेजीसे]
- हिन्दू, १४-२-१९२४
११०. पत्र : नरहरि परीखको
पूना
बुधवार [१३ फरवरी, १९२४][४]
भाईश्री नरहरि,
तुम्हारा चित्त शान्त है, यह समाचार मुझे आज महादेवभाईने दिया। तार करनेका लोभ बहुत बार होता है किन्तु मैं अपने मनको रोक लेता हूँ। मैं अधीर नहीं बनना चाहता। तुम और मैंहम सब ईश्वरके अधीन हैं। हमें तो जो कुछ करनेके लिए हमारी अन्तरात्मा कहे, वह काम कर डालना चाहिए। इसके बाद परिणाम क्या होगा, इसकी चिन्ता हम क्यों करें? मैं यह जानना चाहता हूँ कि मणिबहन[५]
- ↑ मुहम्मद याकूबके १७ फरवरीके पत्र में इसी तारीखका उल्लेख है।
- ↑ केन्द्रीय विधान सभा, दिल्ली; मुहम्मद याकूब उसके सदस्य थे।
- ↑ मुहम्मद याकूबने गांधीजीकी इस इच्छाको ध्यान में रखना स्वीकार करते हुए उत्तर में उन्हें लिखा था : "आपने पत्र में जो कुछ लिखा है वह इतनी ऊँची चीज है कि मैं उसे असेम्बलीके रेकार्डमें सम्मिलित कराना चाहता हूँ।" (एस॰ एन॰ ८३३४
- ↑ श्री परीखने उपवास किया उसके बाद बुधवार इसी तारीखको पड़ता था।
- ↑ परीखकी पत्नी।