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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

तनिक भी घबराती तो नहीं है; और वह तुम्हारी तपश्चर्या [उपवास] का[१] रहस्य समझती है या नहीं।

'बापूके आशीर्वाद

मूल गुजराती पत्र (एस॰ एन॰ ९०४४) की फोटो-नकलसे।
 

१११. दक्षिण आफ्रिकामें भारत विरोधी आन्दोलन[२]

[पूना
१४ फरवरी, १९२४]

एक तो दक्षिण आफ्रिकामें इन दिनों एशियावासियोंके खिलाफ आन्दोलन चल रहा है दूसरे संघीय संसद (यूनियन पार्लियामेंट) में वर्ग क्षेत्र विधेयक (क्लास एरिया बिल) विशेष रूपसे विचारके लिए रखा गया है, इसलिए इस सम्बन्धमें अपनी राय जनताके सामने रखना मैं अपना कर्त्तव्य मानता हूँ, क्योंकि मुझसे ऐसी आशा की जाती है कि मैं वहाँकी स्थिति को समझता हूँ ।

दक्षिण आफ्रिका यूरोपीयोंका एशियावासियोंके खिलाफ आन्दोलन करना कोई नई बात नहीं है। यह आन्दोलन लगभग उतना ही पुराना है जितना कि गैर-गिरमिटिया भारतीयोंका दक्षिण आफ्रिकामें पहले-पहल जाकर बसना और इसका मुख्य कारण है फुटकर गोरे व्यवसायियोंकी व्यापार-सम्बन्धी डाह। दुनिया के दूसरे हिस्सोंकी तरह दक्षिण आफ्रिकामें भी स्वार्थग्रस्त लोग यदि लगातार अपनी बात कहते रहें तो बिना कठिनाईके उन लोगोंकी सहायता प्राप्त कर लेते हैं जिनका उसमें उनके बराबर स्वार्थ तो नहीं होता, परन्तु फिर भी जो स्वयं विचार करनेका माद्दा नहीं रखते। मुझे याद है, मौजूदा आन्दोलन १९२१ में शुरू हुआ था[३] और यह वर्ग क्षेत्र विधेयक (क्लास एरिया बिल) निःसन्देह उसी आन्दोलनका एक फल है।

इस विधेयक के स्वरूप और प्रभावपर कुछ लिखनेके पहले इस बातकी ओर ध्यान दिलाना जरूरी है कि यह १९१४ में दक्षिण आफ्रिकी संघ सरकार तथा भारतीयों-के बीच हुए समझौतेके खिलाफ है।[४] किन्तु इस समझौते में भारत सरकार और साम्राज्य सरकारका भी उतना ही हिस्सा है जितना कि संघ सरकार और भारतीय समाजका; क्योंकि यह समझौता भारत सरकार और साम्राज्य सरकारकी जानकारीमें तथा उनकी रजामन्दीसे किया गया था। भारत सरकारने तो बाकायदा सर बेंजामिन रॉबर्टसनको अपना प्रतिनिधि बनाकर भेजा था ताकि वे आयोगके काम-काजपर

  1. देखिए "पत्र : नरहरि परीखको", २१-२-१९२४।
  2. यह वक्तव्य प्रायः सभी समाचार पत्रोंमें प्रकाशित हुआ था।
  3. देखिए खण्ड १९, पृष्ठ ५३५-३६।
  4. देखिए खण्ड १२, पृष्ठ ४३९-४२।