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दक्षिण आफ्रिकामें भारत विरोधी आन्दोलन

नजर रखें। इस आयोगको संघ सरकारने कहनेको तो भारतीयोंकी स्थितिकी जाँच करनेके लिए नियुक्त किया था, किन्तु वास्तवमें उसका उद्देश्य बातचीत द्वारा समझौता करना था। समझौतेकी मुख्य शर्तें भारत सरकारके प्रतिनिधि सर बेंजामिन राबर्ट्सनके भारत लौटने के पहले ही तय हो गई थीं।

उस समझौते के अनुसार संघ सरकार भविष्य में एशियावासियोंके खिलाफ कोई कानून नहीं पास कर सकती। उस समय यह बताया गया था कि भारतीयोंकी कानूनी हालत धीरे-धीरे सुधारी जायेगी और एशियावासियोंके खिलाफ जो कानून उस समय विद्यमान थे उन्हें भविष्यमें रद्द कर दिया जायेगा। पर बात इसकी ठीक उलटी हुई। सर्वसाधारणको याद रहे कि इस समझौतेकी भावनाको तोड़नेका पहला प्रयत्न उस समय हुआ जब कि ट्रान्सवालमें मौजूदा कानूनको अमलमें लाने की कोशिश की गई, जो कि भारतीयोंके खिलाफ था और जो समझौते के समय जैसा चलन था उसके भी प्रतिकूल था। यह वर्ग क्षेत्र विधेयक (क्लास एरिया बिल) तो भारतीयोंकी आजादीको और भी कम कर देता है।

इस समझौते के अन्य छिपे हुए और चाहे जो अर्थ हों, पर इस बात में कोई विवाद नहीं हो सकता कि १९१४ के निपटारेके[१] अनुसार संघ सरकार भारतीयोंकी आजादीपर भविष्य में प्रतिबन्ध न लगानेके लिए वचनबद्ध है। दक्षिण आफ्रिकाके गवर्नर-जनरलके नाम भेजे हिदायतनामेके अनुसार महामहिम सम्राट्को नामंजूरीका अधिकार अवश्य है पर यदि साम्राज्य सरकार सौंपे गये कामके प्रति ईमानदार रहना चाहती है तो उसका फर्ज है कि वह हर हालत में मेरे द्वारा उल्लिखित समझौते की शर्तोंके पालन करनेपर जोर दे।

भारतमें रहनेवाले हम लोग संघ सरकारकी कठिनाइयोंको भी नजर अन्दाज न करें, क्योंकि वह तो दक्षिण आफ्रिकाके यूरोपीयोंकी मर्जीपर ही टिकी है। और उनकी मर्जीका अर्थ है उनके चुने हुए प्रतिनिधियोंकी राय, जिनमें भारतीय और वहाँ के मूल निवासी होते ही नहीं। उन्हें इस प्रकार अवांछित रूपसे वंचित रखनेका यह दोष दक्षिण आफ्रिका संविधानमें शुरूसे ही है। यही दोष उन अधिकांश स्वराज्य-प्राप्त उपनिवेशोंके संविधानमें भी है, जिनमें भारतीय या वहाँके मूल निवासी बसते हैं। चूंकि साम्राज्य सरकारने इस दोषको रहने दिया है इसलिए वह इस बात के लिए बाध्य है कि उससे निकलवाले बुरे नतीजोंको रोके। दक्षिण आफ्रिका और केनियाकी परिस्थितिसे अभी कुछ ही दिनोंमें यह बात साफ हो जायेगी कि साम्राज्य प्रणालीमें नैतिकताकी कीमत कितनी है। लोकमत के दबावसे सम्भवतः दोनों जगहोंका कष्ट अस्थायी रूपसे दूर हो जाये किन्तु वह अस्थायी ही होगा। जबतक इंग्लैंड या भारतमें कोई अकल्पित क्रान्तिकारी परिवर्तन नहीं होता तबतक इस दुःखान्त नाटकका आखिरी अंक आगेको ही टलता चला जायेगा।

अब स्वयं विधेयकके सम्बन्धमें सुनिए। नेटाल नगरपालिका मताधिकार विधेयक सिर्फ नेटालपर ही लगाया जानेवाला था। खुशीकी बात है कि उसे संघके गवर्नर-

  1. देखिए खण्ड २१, पृष्ठ ४३६।