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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जनरलने अपने विशेष अधिकारका प्रयोग करके नामंजूर कर दिया है। लेकिन यह वर्ग क्षेत्र विधेयक (क्लास एरिया बिल) तो तमाम गरीब प्रान्तोंपर लगाया जानेवाला है। यह सरकारको इस बात के लिए समर्थ बना देता है कि वह वहाँ बसे हुए तमाम भारतीयोंको अलग बसा दे और दूसरे एशियावासियोंको भी अलग बसाकर उनका व्यापार क्षेत्र भी अलग कर दे। इस तरह दूसरे रूपमें यह १८८५ में भूतपूर्व ट्रान्सवाल सरकार द्वारा तजवीज की गई बस्ती प्रणाली[१] है।

अब में संक्षेपमें यह बताता हूँ कि इस तरह अलग रखे जानेका क्या अर्थ हो सकता है? प्रिटोरियामें, जहाँसे १८८५ के कानूनके होते हुए भी अभीतक किसी भारतीयको हटनेपर मजबूर नहीं किया गया है, भारतीय बस्ती कस्बे से बहुत दूर है; और अंग्रेज, डच या नीग्रो कोई खरीदार वहाँतक नहीं जा सकता। ऐसी बस्तियोंमें व्यापार आपसमें ही है। ऐसी हालत में अलगावपर पूरी तरह अमलका अर्थ है बिना क्षतिपूर्ति उनको अपने देश चले जानेपर मजबूर करना। यह सच है कि विधेयक कुछ अंशोंमें मौजूदा हकोंकी रक्षाका आभास अवश्य देता है। पर भारतीय बाशिन्दोंके लिए ऐसे संरक्षणकी कुछ कीमत नहीं है। किस तरह अमलके वक्त ये संरक्षण लगभग निरर्थक हुए हैं, मैं इस बातके कितने ही उदाहरण अपने दक्षिण आफ्रिका के अनुभवोंसे दे सकता हूँ, लेकिन में इस लेखको और बढ़ाना नहीं चाहता।

अन्तमें यह बात याद रखनी चाहिए कि जब दक्षिण आफ्रिका के लिए भारतीय प्रवासपर कोई प्रतिबन्ध नहीं था, तब यूरोपीयोंने यह डर प्रकट किया था कि लाखों भारतीय आ-आकर दक्षिण आफ्रिकापर छा जायेंगे। उस समय दक्षिण आफ्रिकाके तमाम राजनीतिज्ञ कहा करते थे कि कुछ भारतीयोंको तो दक्षिण आफ्रिका आसानीसे हजम कर सकेगा और उनके साथ बरताव भी उदारतापूर्ण किया जा सकेगा, लेकिन यूरोपीय लोग तबतक दम नहीं ले सकते जबतक कि उनके दक्षिण आफ्रिकापर छा जानेकी सम्भावना बनी हुई है। पर अब चूंकि १८९७ से यह छा जानेकी सम्भावना दूर हो गई है, उन्हें अलग हटा देनेका शोर मचाया जा रहा है। यदि यह बात घटित हो गई तो अगला कदम यह होगा कि उनका निष्कासन अनिवार्य बना दिया जायेगा। यदि अलग बसाये गये भारतीय अपनी खुशीसे नहीं चले जाते तो होगा यह कि दक्षिण आफ्रिकाके यूरोपीय प्रवासी साम्राज्यके न्यासियोंको जितना अधिक नरम पायेंगे उतना ही अधिक एशियाइयोंके खिलाफ अपनी माँगोंको तेज करते जायेंगे।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २१-२-१९२५
  1. दक्षिण आफ्रिकामें भारतीयोंको कुछ निश्चित क्षेत्रों में रहनेपर बाध्य किया जाता था। इन क्षेत्रोंको बस्ती (लोकेशन) कहा जाता था। देखिए खण्ड २, पृष्ठ १९।